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अधिवक्ता संजीव रामपाल मिश्रा

Abstract

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अधिवक्ता संजीव रामपाल मिश्रा

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वक्त

वक्त

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वक्त अक्सर ही गतिमान रहता है,

और वक्त के साथ बुद्धिमान होता है।


समय चक्र अक्सर ही अपनी करवट बदलता है,

और कामयाब वह जो वक्त के साथ सभंलता है।


वक्त को थामना किसी ने जाना नहीं है,

वक्त एक विषमताओं का समीकरण है,


जो प्रकृति को बदलता और बनाता है,

वक्त आदमी को बचपन से बुढ़ापे तक बदलता है।


वक्त के साथ दोस्ती आदमी की पहचान है,

वक्त के साथ जो नहीं वह खुद बेईमान है।


वक्त की हर शह गुलाम मात कहां हिसाब है,

आदमी वक्त का पाबंद फिर भी बेलगाम है।


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