वक्त का पहिया
वक्त का पहिया
एक दर्द न जाने कैसा, नैनन से मेघ बरसा रहा हैं।
देख मनुज का पतन, दर्द मुझको रूला रहा है।।
श्रम , सफलता की कुंजी, क्यो तू इसे भुला रहा हैं।
भाग भाग मशीनों के पीछे, मशीन बनता जा रहा है।।
साध्य को तू भूल कर, साधन ही तो अपना रहा है।
लगन, तपस्या भूलकर, श्रम से नाता भुला रहा है।।
चंद कागज के टुकड़े कमाने, दिलो को रुला रहा है
वक्त भागता हुआ तुझे, जाने का समय बता रहा है।।
महल अपने तू बना, झोपड़ों पर मुस्कुरा रहा हैं।
दो गज ही तन पाता, वक्त का पहिया, बता रहा है
प्रस्थान का समय धरा से, अंतर सारे मिटा रहा है।
धरा पर जो बनाया जीव, छोड़ धरा से जा रहा है।।