वक्त ए मर्ग है
वक्त ए मर्ग है
यूं लगे हमें जिन्दगी हम उधार की जी रहे है।
अपने ही घर में हम किरायेदार से रह रहे है।।1।।
वक्त ए मर्ग है अब तो आजा दीदार के लिए।
हम कब से तेरी खातिर हालात से लड़ रहे है।।2।।
तेरे आने से कभी महकता था जो घर हमारा।
सारे ही रंग इसके दरों - दीवार से उड़ रहे है।।3।।
ये जालिम दुनियां कब चाहेगी हम तुम मिले।
दुश्मन बनके वो हमेशा ही राह में लड़ रहे है।।4।।
इक तेरी ही ख्वाहिश करता है ये दिल हमारा।
इसके सिवा कुछ ना हम खुदा से चाह रहे है।।5।।
सबही आए है यहां हमको दफनाने के वास्ते।
पर हम है जो बस तेरा ही इंतजार कर रहे हैं।।6।।