दयाल शरण

Abstract Inspirational

5.0  

दयाल शरण

Abstract Inspirational

विवेक

विवेक

1 min
431


इतनी नफरत

अचानक 

नहीं हुई होगी,

चिंगारी आग

यूँ ही नहीं

हुई होगी।


समझ में

जरूर कोई

कमी तो होगी,

नासमझ यूँ ही

जिंदगी नहीं

हुई होगी।


साफ़गोई

कड़वी जरूर

होती होगी,

अहं पे चोट

कोई बड़ी

लगी होगी।


बोलती खूब हैं

लकीरें, उनको 

समझना होगा,

'ना' कहती हैं 

तो 'हाँ' समझना

हादसा होगा।


शफ़क़ पे

चाँद-सूरज-तारे

भीड़ तो होगी,

सब तयशुदा रोल में हैं

यूँ ही सुबह से शाम

तो नहीं हुई होगी।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract