विषय -कमजोर कहां हो तुम नारी
विषय -कमजोर कहां हो तुम नारी
एक स्त्री प्रेम में रो सकती है , और धो भी सकती है ,
स्त्री प्रेम में टूट भी सकती है रूठ भी सकती है
लूट भी सकती हैं किसी को कूट भी सकती हैं......
स्त्री प्रेम में जोड़ सकती हैं तोड़ सकती है मोड़ सकती है और सिर भी फोड़ सकती है........
स्त्री प्रेम में डर सकती है स्वर सकती है मर सकती है और
जरूरत पड़ने पर किसी को एक दो जड़ भी सकती है.......
स्त्री प्रेम में भटक सकती है दुनिया की नजरों में खटक सकती है
प्रेमी की खातिर मटक सकती है स्त्री चाहे तो आसमान में पहुंचा दे और
औकात भूलने पर धरती पर पटक सकती है.......
स्त्री प्रेम में लजा सकती हैं खुद के साथ घर आंगन को सजा सकती हैं और
बात अपने स्वाभिमान पर आ जाए तो किसी के कान के नीचे एक बजा भी सकती है ........
स्त्री प्रेम में ढल सकती है अंगारों पर चल सकती है
प्रेमी की याद में गल सकती है मोह माया में फंसा कर किसी को भी छल सकती है
स्त्री प्रेम में सब कुछ झेल सकती है वो किसी के भी साथ खेल सकती हैं.......
कभी प्रेम में आ सकती हैं कभी भी छोड़ कर जा सकती है
प्यार में पढ़ कर सरगम भी गा सकती है
स्त्री जो चाहे वह पा सकती है नारी यदि प्यारी हो सकती है
तो सब पर भारी भी हो सकती है.........
