विसंगतियां
विसंगतियां
मानव मन की विसँगतियाँ समेटकर आना
और अगले कई जन्मों का उद्धार हो जाना!
फकत एक ही तो बात है...
आज नही तो कल मानव की,जीवन ज्योति जलेगी।
जीतेगी सच्ची नैतिकता, कुण्ठित कली खिलेगी।।
छद्मवेश धारी हारेंगे, खुल जाएंगे उनके भेद।
विजय पताका नव समाज की,फहराएगी लक्ष्य प्रभेद।।
सरल हृदय होगा मानव का, रिश्तों मे भाई चारा।
सम्प्रदाय विद्वेष मिटेगा, एक धर्म होगा प्यारा।।
रिश्ते नाते ही मानवता के, सच्चे साधक होंगें,
अन्तर्मन से क्षोभ मिटेगा, कोई नही बाधक होंगे।।
सभी कालिमा धुल जायेगी, मन मंदिर निर्मल होगा,
खुशियों का भी आश्रय होगा, हर मन मे संबल होगा।।
रामराज्य की पूर्ण कल्पना, हे सौमित्र जभी होगी।
पारदर्शिता लौकिक जीवन की भी, पूर्ण तभी होगी।।
सेवक होंगें मात पिता के, दुष्टों का बारा न्यारा।
निश्चय हर मन मे उपजेगी, आध्यात्मिक निर्मल धारा।।
मानवता की सेवा होगी, जीवन का बस एक अधार,।
सभी भारती कहलायेंगे, तब मतंग होगा उद्धार।