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Mahendra Kumar Pradhan

Abstract Romance

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Mahendra Kumar Pradhan

Abstract Romance

नजरें

नजरें

1 min
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नज़रें जो उठती हैं

तो नज़ारे बदल जाते हैं।

नज़रें जो झुकती हैं तो

कुछ कुछ बहक जाते हैं हम।


नज़रें जो मिलती हैं

तो हृदय पिघल जाते हैं।

नज़रें जो शर्माती हैं तो

कहीं खो जाते हैं सारे ग़म।


नज़रें जो उसकी खुलती हैं

तो मेरे जहान का होता सवेरा,

पलकें जब झपकती हैं तो

मेरे जहान में छा जाते हैं तम।


नज़रें जब इशारे करती हैं

तो बढ़ जाती हैं धड़कने

नज़रें उसकी जब रोती हैं तो

घबराकर रोते हैं हम।


नज़रें उसकी जब रूठती हैं

तो कहीं सुकून मिले न चैन

नज़रें उसकी मुस्कुराती हैं तो

सुख मिलते हैं सर्वोत्तम।


नज़रें जो मन मोह लेती हैं

तो मोक्ष पा जाए जीवन

नज़रें वो अविश्वास करे तो

छेद जाए हृदय को निर्मम।


नज़रें उसकी जगमोहिनी

दिव्य ज्योतिर्मयी मृगनयनी

नज़रें वो प्रिय-शुभदर्शिनी

हैं अति दुर्लभा अनुपम ।


नज़रें वो जब रास रसाती हैं

तो कुवांरे सारे दुआ मांगते हैं

नज़रें वाली के दिल में बसाकर

उनको बना दे प्रियतम ।


नज़रें दुआएँ मांगती हैं मेरी

तो बस मांगती हैं मालिक से

नज़रें उनकी सलामत रखना

ऐ मेरे मालिक हरदम ।



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