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Achla Mishra

Romance

4.6  

Achla Mishra

Romance

प्रेम!

प्रेम!

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एक असीम प्रवाह, एक अद्भुत आभास

अकथनीय, अतुलनीय एहसास

पूर्ण समर्पण और विश्वास

सब मिल करें प्रेम आगाज़।


इतना पावन, इतना निर्मल

जैसे कि हो गंगाजल।

शूल को भी पुष्प बना दे

अंगारों से दिए जला दे।


जो उस कल्पित ईश्वर से आस्था निभाए

और जहां भक्त की खातिर स्वयं ईश्वर बिक जाए

वहां है प्रेम।


जब माटी पर सब हक जताएं

और एक सैनिक वहीं शहीद हो जाए

वहां है प्रेम।


जो मात पिता के चरणों में चारों धाम बसा दे

और जो अतिथि को भी देव बना दे

वहां है प्रेम।


जब एक कवि की भावनाएं बहक जाएं

और शब्दों क

ा एक मार्मिक जाल पिरो जाएं

वहां है प्रेम।


जहां सूर्य स्वयं की तपिश में जल सब सह जाए

और चांद को चांदनी से रोशन कर जाए

वहां है प्रेम।


जब बिन कहे कोई माथे की शिकन पढ़ जाए

और गैरों में भी अपनापन नजर आए

वहां है प्रेम।


जब किसी की धड़कन जीवन का राग बन जाए

और किसी की मुस्कुराहट पर जां निसार किया जाए

वहां है प्रेम।


प्रेम का इल्म कुछ ऐसा हो, कि इबादत सिखा जाए

कृष्ण को राधा बना दे, या राधा को कृष्ण बना जाए

वहां है प्रेम।


निस्वार्थ, निश्छल, शाश्वत, अविरल

अपरिभाषित भाषा है

यही प्रेम परिभाषा है।


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