विश्व रेडियो दिवस
विश्व रेडियो दिवस
रेडियो के दिन वो पुराने थे
रेडियो के हम बड़े दीवाने थे
सचिन जब सिक्स लगता था
अखबार पढ़ते दादा का चश्मा
गिर जाता था
विविध भारती का प्रसारण पूरे 24
घंटे आता था
मां का रेडियो सुन गाना गुनगुनाना पूरे समय
रसोई में चलता रहता था
समाचार के लिए बाबू जी और
मां में तक्झक चलती रहती थी
समाचार और भूले बिसरे गीत सुनने को
कहा सुनी होती थी
बाबू जी के चैनल पलटते लड़ाई होती थी
शाम में जयमाला आता था
ताऊ में फिर देखो देश प्रेम उमड़ जाता था
फिर अंग्रेजों और भगत सिंह
क्रांतिकारियों की बातें शुरू होती थी
तब कही जय माला कार्यक्रम खत्म होता था
गांव में टोला मोहल्ला जुट जाता था
जब रेडियो पे क्रिकेट शुरू हो जाता था
मैं दबा सहमा रह जाता था
जब इंडिया का विकट गिर जाता था
सदाबहार प्रसारण जब आता था
मेरा दिल बाग बाग कर जाता था
कमरे में डांस टोली संग होती थी
सामान टूट जाने पे हमारी पिटाई होती थी
सुबह भगवान का भजन जब आता था
दादा का माला जाप शुरू हो जाता था
अब रेडियो का दौर दूर हो गया
जैसे लगता मेरा अपना कोई दूर हो गया
अब टेलीविजन देख लोग अश्लील दृश्य
अपनाते है।
पश्चिमी सभ्यता अपना कर भारत का मान घटाते है
अब कहा लोग एक दूजे के लिए समय निकाल पाते है।
मोबाइल रख हाथों में अब रेडियो को देख मुंह बिचकाते थे
मैं कहना चाहता हूँ उन नादानों से
मैं कहना चाहता हूँ उन नासमझों से
रेडियो पे क्रिकेट और गाने सुनने में जो आनंद हमें आ था
वह आनंद अब सुख सुविधा से भरे उपकरणों में कहा आता है
रेडियो के बहाने हम घंटों बाबा के पास समय गुजरते थे
खाट पे बैठ दादा और दादी का प्यार पाते थे
अब रेडियो हमारा खो सा गया है
किसी दराज के कोने में वह धुल सेक रहा है।