विरह-वहन--!
विरह-वहन--!
अनंत विरह की वेदना में,
हृदय में हुए सहस्र छेदन।
अश्रु-बहाव में भाव-गहन ।
भीगी आशाओं में भीगे नयन,
विश्वास भरा ये आत्म-क्रंदन।
क्षण-क्षण करता मन रुदन,
पीड़ा के सागर का विरह-वहन।
करता क्यों बन चंदन !
विरह-वेदन में श्याम बसा,
पीड़ा में बन विश्राम बसा।
चिर-स्थायी रूप अनुपम,
हृदय पीड़ा में श्याम वंदन।
विरह-व्यथा का विरह-वहन !