विरह वेदना
विरह वेदना
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विरह अग्न जगी तरसे मैना
झरे नीर ज्यूं बरसे नैना
चकोर दर्श की आस में देखो
वन वन फिरे भटकती मैना।
जल बिन तड़पे मछली जैसे
दर्श बिन चैन न पाएं मैना
दूर से आता देख चकोर को
सुमधुर गीत सुनाए मैना।
हुई दूर विरह की ज्वाला
खुशी में नृत्य दिखाए मैना
देखकर हसीं मिलन दोनों का
मिला सुकून मन पाए चैना।
झूमे चांदनी संग चन्दा के
खिले कमल दल बीती रैना
हुए दोलायमान तरू भी
सुखानुभूती में बरसे नैना।