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jyoti pal

Romance

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jyoti pal

Romance

विरह अग्नि

विरह अग्नि

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प्रिय अब आ भी जाओ तुम

विरह अग्नि बहुत सताती है


तुम्हारी चादर की सलवटें 

हमारी चादर से मेल खाती है


रातों को नींद अब पहले जैसी नहीं आतीं

ख्यालों में तुम्हारी,नींद मुश्किल से आती है


जहां प्रेम हैं वही विरह है पर,

लगता है किसी ने हमारे प्यार को

बुरी नज़र लगा दी है


याद करके सोते हैं तुम्हें

तुम्हें याद करके जागते हैं


रोता है दिल

आंखे नम हो जाती हैं


जब तुम्हें हकीकत में नज़रे

खुद से जुदा पाती हैं


नीर मोतियों से बिखरते हैं

लबों से सिसकियां निकल जाती हैं


प्रिय अब आ भी जाओ तुम

विरह अग्नि बहुत सताती हैं!



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