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Vivek Agarwal

Inspirational

4.9  

Vivek Agarwal

Inspirational

विक्रमादित्य का साम्राज्य

विक्रमादित्य का साम्राज्य

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आज सुनाता कथा पुरानी, जब सोने की चिड़िया भारत था। 

सुख समृद्धि से सज्जित, स्वर्ण-भूमि में सबका स्वागत था। 


अमरावती से सुन्दर नगरी, जहाँ महाकाल का धाम था। 

समस्त विश्व का केंद्र थी, उज्जयिनी जिसका नाम था। 


इंद्र से भी वैभवशाली, चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य सम्राट थे। 

चहुँ ओर फैला था साम्राज्य, गौरव से उन्नत ललाट थे। 


स्वर्ण रजत मोती माणिक, धन धान्य से भरे थे राजकोष। 

पर वो अनमोल रतन कौन थे, जो देते सच्चा परितोष। 


जौहरी राजन को पहचान थी, की धन से बड़ा है ज्ञान। 

सभा में उनकी नवरत्न थे, सब एक से बढ़ एक महान। 


धन्वन्तरी थे प्रधान चिकित्सक, आयुर्वेद के अध्भुत ज्ञाता। 

उनकी औषधियों के सम्मुख, कोई रोग टिक नहीं पाता। 


कालिदास की लेखनी पर थी, माँ शारदे की कृपा अनंत। 

अभिज्ञान-शाकुंतलम की कीर्ति का, कभी न होगा अंत। 


वररुचि एक कवि महान, इनकी शिष्या थीं राजकुमारी। 

पत्रकौमुदी विद्यासुंदर के लेखक, आदर के अधिकारी।


वराहमिहिर की ज्योतिष गणना, सम्पूर्ण विश्व में विख्यात। 

ग्रह-नक्षत्रों पर शोध निरंतर, वो करते रहते दिन रात। 


वेताल भट्ट माया के स्वामी, भूत-पिशाच को वश कर लेते। 

वेताल पञ्चविंशतिका के लेखक, राय सही राजा को देते। 


घटकर्पर एक कवि विलक्षण, यमक काव्य के पंडित। 

नीतिसार सी सुन्दर रचनाएँ, करें आज भी आनंदित। 


क्षपणक सिद्ध मुनि दिगंबर, नीति धर्म शास्त्र महाज्ञानी। 

अनेकार्थध्वनिमंजरी रचयिता, ओजपूर्ण थी जिनकी वाणी। 


शंकु बहु प्रतिभा स्वामिनी, मंत्रोच्चारण में अति प्रवीण। 

ज्योतिष और साहित्य में जिसने, किया योगदान नवीन। 


अमर सिंह संस्कृत के पंडित, कवि भी एक विलक्षण। 

सम्राट सचिव बनके पाया, महाराज का पूर्ण सरंक्षण। 


अमूल्य नवरत्नों से सुशोभित, उज्जयनी की राजसभा। 

दिग-दिगांतर तक प्रकाशित, इनकी प्रतिभा की प्रभा। 


दूर-सुदूर देशों से व्यक्ति, याचक बन कर आते थे। 

ज्ञान विज्ञान कला साहित्य, से झोली भर कर जाते थे। 


भारत का वो स्वर्णिम युग, एक दिन लौटकर आयेगा। 

जब असली रत्नों की पहचान, हर व्यक्ति कर पायेगा। 



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