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Archana Singh

Tragedy

4  

Archana Singh

Tragedy

विचलित धरा है

विचलित धरा है

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झंझावातो से जीवन घिरा है ,

विचलित धरा है, 

नजरें उठाओ तो सभी हैरान हैं, 

हर तरफ हर आदमी परेशान है। 

कहीं रिश्ते खोखले हो रहे

कहीं व्यर्थ चोचले हो रहे ,

कहीं दुश्मनी उत्कर्ष छू रही ,

कहीं दरिंदगी खून पी रही । 

कहीं बचाव कहीं डर, 

हर तरफ से जीवन दूभर 

कल जो था वह आज नहीं ,

भेड़ बकरी हो गए हैं हम सभी । 

बाहरी नहीं कोई यहां

सब अपने ही हैं यहां 

लेकिन फिर भी

छुपा छुपउवल खेल रहे 

जाने क्यों दुश्मनी मोल ले रहे । 

समझ से परे है यह खेल ,

जाने कैसा है यह रेस ,

गिर रहा कोई औंधे मुंह 

कोई चित् हो जा रहा, 

जाने कब तलक चलेगा यह ,

जाने कब समझेगा मानव, 

हम मानवों के कुकृत्यों से ही ,

विचलित है धरा भी।


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