विचलित धरा है
विचलित धरा है
झंझावातो से जीवन घिरा है ,
विचलित धरा है,
नजरें उठाओ तो सभी हैरान हैं,
हर तरफ हर आदमी परेशान है।
कहीं रिश्ते खोखले हो रहे
कहीं व्यर्थ चोचले हो रहे ,
कहीं दुश्मनी उत्कर्ष छू रही ,
कहीं दरिंदगी खून पी रही ।
कहीं बचाव कहीं डर,
हर तरफ से जीवन दूभर
कल जो था वह आज नहीं ,
भेड़ बकरी हो गए हैं हम सभी ।
बाहरी नहीं कोई यहां
सब अपने ही हैं यहां
लेकिन फिर भी
छुपा छुपउवल खेल रहे
जाने क्यों दुश्मनी मोल ले रहे ।
समझ से परे है यह खेल ,
जाने कैसा है यह रेस ,
गिर रहा कोई औंधे मुंह
कोई चित् हो जा रहा,
जाने कब तलक चलेगा यह ,
जाने कब समझेगा मानव,
हम मानवों के कुकृत्यों से ही ,
विचलित है धरा भी।
