विचााभिव्यक्ति
विचााभिव्यक्ति
कुत्ता और कुतिया एक-दूसरे के पूरक हैं
चरित्र के नाम
कुत्ता वफ़ादार
और
‘कुतिया’ गाली क्यों बन जाती है?"
औरतों को इसी गाली से नवाजा जाता है...
हर गाली औरत अथवा स्त्री लिंग से प्रेरक
होकर है क्यों निकलती है ?
ख़ुद की बहू बेटी की इज़्ज़त को अपने ही
मुंह से लांछन भरे शब्दों ने निकाल कर,
मर्दानगी बढ़ाने की घटिया रिवायतों का
जुलूस निकाला जाता है,
गंदगी मुंह से ज्यादा दिमाग़ में घूमने वाले
विशाल विचााभिव्यक्ति में संपूर्ण जीवन
समझते हैं।
गंदगी बिना गाली के बात भी मुंह से नहीं
कर पाते कुछ शब्द सटीक जवाब भी नहीं
से पाते ,और ख़ुद को सुलझे इंसान की
गिनती में गिन्नवाना चाहते हैं,
ख़ुद की नज़रों में तो इज्ज़त कर लो जनाब
इज्ज़त मांगी नहीं कमाई जाती है जनाब
गन्दी सोच तो सवार को तभी तो मुंह खोलते
ही उकात दिख जाती है जनाब,
शब्दों का प्रयोग सावधानी से करें जनाब
यही नज़र में उठाते हैं और नज़र से गिराते हैं जनाब।