व्हाट्सअप्प ज़िन्दगी
व्हाट्सअप्प ज़िन्दगी
कहाँ से चल कर किधर जा रहे हैं
कीमती वक़्त व्हाट्सप्प पर बीता रहे हैं
कुछ पड़ रहे है बेमतलब का
कुछ औरों को पड़ा रहे हैं
मिलना जुलना कम है आज
कम ही निकलते है मुँह है अल्फ़ाज़
बातें हो जाती है चैट पर ही सबसे
रूबरू बात करने से
क्या आती है लाज।
अब तो खुद उतना नहीं चलते
जितनी उंगलिया चलती है
दोस्ती कितनी भी गहरी हो
पर व्हाट्सप्प तक ही पलती है।
क्या अदब है
क्या शिष्टाचारी है
गुड मॉर्निंग, गुड इवनिंग
तक तो ठीक था
अब तो व्हाट्सप्प पर ही रिश्तेदारी है
चाहे ग़म हो या ख़ुशी की हो बात
व्हाट्सप्प पर ही निकलते हैं दिल के जज़्बात
अलग अलग इमोजीस
से मैसेज लिखते हैं
फीलिंग गुड या बैड,
बस स्टेटस से ही दिखते हैं।
आज घर में लोग कम फ़ोन ज्यादा है
आपस में बात करने का कम ही इरादा है
मसरूफ रहते है व्हाट्सप्प में इस कदर
लगता है बैठे है गाड़ी में,
और उतर जायेंगे अगले स्टेशन पर
बड़ी अजीब सी हो गयी है ज़िन्दगी
कहीं खो गयी है सच्ची ख़ुशी
वक़्त के साथ फिर बदल जाएगी
ये ज़िन्दगी फिर जिन्दादिली कहलाएगी।