वह मेरा लिखा पहला खत
वह मेरा लिखा पहला खत
समय था सुहाना सुहाना।
उमंगों से भरा था मन हमारा।
कह रहा था शादी में दिन बहुत कम है अपने दिल की उद्गार लिख दे।
मन बस मचल-मचल कर बोल रहा था कुछ तो लिख दे।
कुछ तो लिख दे।
अपने प्रियतम को तु खत लिख दे।
दिल की झिझक हार गई।
पेन उठाया लिख दिया दिल का हाल।
भेज दिया खत उनके पास ना वापस चेक किया।
कि कहीं कुछ गलत तो नहीं लिख दिया।
गनीमत यह थी कि वह पत्र हमारे जाने के बाद
में मिला और मुझको ही मिला।
खोल कर देखा तो पता लगा जल्दी-जल्दी में
लेटर की स्पेलिंग भी गलत लिखी थी।
अपने आप पर इतनी हंसी आई कि
जल्दी-जल्दी में यह भी नहीं देखा कि क्या सही है
और क्या गलत है।
और ऐसे ही लिख कर डाल दिया तो यह हाल है।
हमारे पहले पत्र का जो उन तक पहुंचा ही नहीं था।
बाद में हमने उनको बताया कि हमने आपको पत्र लिखा था।
मगर हमने उसको सुधार दिया था।
तो कोई हमारी गलती पकड़ ना पाए।
जब भी खत की बात आती है तो हमें यह बात याद आती है।
और अपने आप पर ही हंसी आ जाती है।
कि खत लिखने की इतनी जल्दी थी। डालने की इतनी जल्दी थी।
कि पूरा चेक करा ही नहीं
तो यह की दास्तान हमारे पहले लिखे खत की।