वह लड़की है कहां
वह लड़की है कहां
जन्म से पहले ही, बिटिया आएगी,
आस लगाए था ,मेरा पूरा परिवार।
जन्म पर जिसकी खुश हुआ,
सारा ही घर - परिवार।
लगा था ऐसे -जैसे मानो,
भर गया सारा, सुना जग-संसार।
देख कर उसकी माता - दादी तो,
उस पल फूले नहीं समाए थे।
बाबा खुश हुए ऐसे और बोले,
देखो ! मेरे घर में लक्ष्मी आई है।
देख उसकी मुस्कान और मोहनी मूरत,
मुग्ध हुए घर परिवार और सभी लोग।
सुंदर फूल सी, कोमल ऐसी पंखुड़ियों सी,
चंचल तितलियों सी, इठलाती इतराती।
गूंजने लगी किलकारियां आंगन में,
सबके मन को सहज वह हर लेती थी।
जीवन का अनुपम सुख सबको देती थी,
वह लड़की है कहां ?
बाबा -बाबा कहती फिरती,
सरस वाणी से बुलाती 'अम्मा'
सबका मन मोह हर्षाती
अब वह थोड़ी सी बड़ी हो गई,
आंगन से निकल कर गलियों में।
वह हिरनी जैसी घूमती-फिरती,
हंसती जैसे हो फूल कुमारी।
गाती जब ' शारदा सिन्हा' सी।
दादी कहती यह तो सरस्वती है मेरी,
है वाणी इसकी वीणा सी।
झंकृत कर देती है तन -मन को,
मैं इसकी और यह मेरी गीतों की दीवानी।
मुझको तो लगे ऐसे जैसे,
मिल गई फिर से मेरी नानी।
वह लड़की है कहां ?
वह थोड़ी और बड़ी हो गई,
बिटिया पहुंच गई है स्कूल में।
जल्दी जागे अब सबसे आगे,
घर के कामों में भी हाथ बंटाए।
फिर परियों से झट से तैयार होकर,
करती फिर पूजा राजकुमारी सी।
पाठ और गृहकार्य पूरा करके,
पहुंच जाए सबसे पहले स्कूल।
पढ़े -लिखे वह बड़े ध्यान से,
इसी तरह देख-सीख कर दुनिया से।
शोला भी अब बन गई वह फूल,
फूलों से मिलती फूल सी।
शूलों को मिलती शूल सी,
वह लड़की है कहां ?
अब वह केवल भोली - भाली,
सीधी- साधी और नादान न रही।
पूरी दुनिया उठा ली कंधे पर,
उसकी अब घर तक ही केवल।
बस आज उसकी पहचान न रही,
हर जगह उसका बजता डंका है।
सुना उसके बिना अब आसमान
अब तो पूरी दुनिया ने भी।
उसका लोहा मान लिया है,
घर हो या बाहर,या दफ्तर हो।
या फिर हो कोई शिक्षण संस्थान,
सेना-पुलिस या कोई बर्फीला-रेगिस्तान।
अब तो हर जगह ही है ,
उसकी अपनी पहचान।
अब तो आप यह मत पूछिए ,
वह लड़की है कहां ?