वादा करो
वादा करो
तुम्हें देख दिल का मचलना है क्या
पलकों का शर्मा के झपना है क्या।
गुम सुम सी तुम भी हो बैठी मगर
कँपकँपाते अधरों का खुलना है क्या।
अब तक समझ ही न पाया इसे
भावों का पल-पल बदलना है क्या।
सत्य हो या हो कोई कल्पना
या मंगल अवसर की हो अल्पना
न अब चुप रहो, कुछ तो आवाज़ दो
मिलने की मुझसे करो संकल्पना।
जो बिछड़े अभी फिर मिलेंगे कहां
तुम रहोगी कहीं, मैं रहूँगा कहां
जो इक प्राण हैं हम दोनों अगर
तो बिछड़ करके दोनों रहेंगे कहां।
न अब चुप रहो, मुझ को आवाज़ दो
शीश काँधे पे रख घन का अहसास दो
तृप्त हो जाएगी ये प्यासी धरा
प्रेम भाव की ऐसी घनसार दो।
गर जो कहीं तुम कोई स्वप्न हो
तो स्वप्न की किरण मुझ को दो
मेरी सृष्टि भी है समर्पित तुम्हें
मेरी पलकों पे सजने का वादा करो।।