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Rudra Singh

Abstract

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Rudra Singh

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उस दिन की बात

उस दिन की बात

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उस दिन की बात मुझे अब नहीं कहनी,

क्योंकि उस रात की अपनी अलग कहानी है,

अरमान मेरे जरूर थे उससे बहुत कुछ कहने को,

मगर उसने मेरी बात कहां सुनी थी,


सारी रात सफाई दी मैंने अपनी बेगुनाही की,

मगर वो सजा सुना कर चली गयी,

अपना गुनाह गिनाया था उसने मुझको,

मगर उसकी सजा भी उसने मुझको ही दी,


शायद उसको चाहने की मेरी यही सजा थी,

सारे सपने,अरमानों का गला घोंटा था उसने उस रात,

उसके कमरे से जाने के बाद बची थी बस एक जिंदा लाश,

नहीं पता था उस शख्स से मोहब्बत करके हम जिंदगी से यूँ हार जायेंगे,


जिसकी पल भर की हंसी पर हम मरते हैं

वो एक दिन हमें यूँ छोड़ जाएंगे,

नहीं पता था वो हमसे रिश्ता यूँ तोड़ जाएंगे,

नहीं पता था वो हमें एक दिन इस तरह से गुनहगार बनायेगा,

गलती क्या थी मेरी ये मुझको पता न था,


शायद मुझसे दूर जाने के लिए उसका यही बहाना था,

लौटकर मुझपर को एहसान नहीं कर रहा है वो,

अपनी कामयाबी को गिना कर मुझको नीचा दिखा रहा है,

पर वो शक्श नहीं जान रहा कि वो किसके सामने इतरा रहा है,


जिस पर बरसों उसको कामयाब बनाने का एहसान रहा है,

ले एक एहसान और करता हूँ

उस खुदा से हमेशा तेरी सलामती की दुआ करता हूँ,

और न आये तो कभी मेरे सामने ये में उस खुद से ये फरियाद करता हूँ,


तुझे ये बात जिसको जैसे गानी है गा दे,

फर्क नहीं पड़ता,क्योंकि उस रात की बात अपनी अलग कहानी है ,

उस दिन की बात अब मुझे किसी से नहीं कहनी है।


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