उफ्फ़ ये रात
उफ्फ़ ये रात
नैन बरसे नेह
लब है खामोश
लो चुभते कंगन की आह से
लिपटे एहसास को मुक्त किया !
दो सौंधे सौंधे से जिस्म की
करवटों से सजी रात का
नज़ाकत भरा आलम !
लबों की मद्धम बहती
सरगोशियों में
ज़ाफ़रानी साँसें उलझ गई थीं !
ऊँगली के छल्ले का क्या दोष
ये मतवाले मिलन की अदा
कर गई कुछ शैतानियत !
ऊँगलियों की गिरह
हल्की हो तो चेहरा उपर उठे !
इशशश...
देखो ना रात रुकी हुई है।
हया का चिलमन हटा लूँ
तो पहर आगे बढ़े।

