उनके हुस्न में ...
उनके हुस्न में ...
अज़ अज़ीज़ ए दीलम
हमने जब से आप को देखा है तब से
हम महव ए हुस्न हो गए है
ओर हर सु आप के दीदार ओ हुस्न ए तर्ज़ के
मुस्ताक हुए फिरते है ता हम
जा ब जा कू ब कू चार सु हमे बस
आप ही आप नज़र आने लगे है
यह आप की ही नज़र ए इनायत है जो हम
हर सय ओ सूरत में आप के काईल हुए फिरते हैं
ओर आप की जुल्फ ए दोता व मू ए सियाह का
कमाल हुआ की जो हमारे जमाल में जौ फिगन होकर
हमारे जिस्म ओ जा को महताब ओ अंजुमन ए रश्क का
मश्कन बना देते हैं
वहीं ताब ए निगाह ए फुसूं हम पर एक दीवाना वार गुज़रा है
जिसकी तह ए खूब असर ए दिल हम मस्तानों के वश
आप की जुस्तजू ए दीदार को मस्ताना वार सर ओ
मुंह खुशबख्त व खुश लिबास हुए फिर रहे है
यह मेरे चमन ए बहार व गुलज़ार ए गुल की बू
मानो ऐसी लगती है की आप का गुज़र व बशर इनमे रहा हो
हर निखहत ए गुल आप के जिस्म ओ तन की मानिंद
इस गुलज़ार ओ चमन में खुशबख्त है
और जब बुल बुल ए बहाराँ की सदा सुनते है तो आप की
शीरी सुखन में मशगूल हो कर आप के हुस्न में खो जाते है
वोह लब ए दहन वोह शीरी सुखन ओर गुंचा
ए लब हमें बे तहाशा याद आने लगते हैं
वोह आप के रुख ए रुखसार व सेब ए ज़क़न को
पहली बार देखा था तब ही हम आप के हुस्न के बे जंजीर ए गिरफ्तार हुए थे
जिसकी गिरफ्तारी में आज हम आप के आशिक़ हुए फिरते हैं
नाज़ ए शौकत व ऐश व इशरत से प्यारा हमे आप का एक दीदार लगता है।

