उँगलियों पर हिसाब
उँगलियों पर हिसाब
बहुत बोलकर भी ख़ामोशी का ख़िताब रखता हूँ,
मैं अँधेरे में रौशनी का उँगली पे हिसाब रखता हूँ,
सुनते नहीं लोग जब मेरे जज़्बातों के अल्फ़ाज़,
मैं दिल निकाल कर कागज़ पर आदाब रखता हूँ,
हाथ उठाकर मांगने से भी कुछ मिलता नहीं यहाँ,
मैं जोड़ कर ही संग टुकड़ों की किताब रखता हूँ,
शरमाता नहीं मैं किसी महफ़िल से जनाब लेकिन,
मैं झूठ के मुँह पे सच का थोडा हिजाब रखता हूँ,
वजन रूह पर मेरी इश्क का उसके दिखता होगा,
मैं आँखे मिलाने में तो ज़माने का लिहाज़ रखता हूँ,
रिवाज़ तोड़ने वालों में रह जोड़ने का सीखा हूँ साकी,
मैं ज़हन में अपने तस्वीरों सा सुंदर ख्वाब रखता हूँ।