उम्र की गुजारिश है
उम्र की गुजारिश है
वक़्त का तकाज़ा या, जिंदगी की कोई साजिश है
ये बेमौसम की बारिश है, या उम्र की गुजारिश है
अपना पक्ष साबित करने की, कोशिश बेकार है
हर किसी को अपना फैसला लेने का अधिकार है
व्यंगात्मक टिप्पणियों पे ध्यान धरना ठीक नहीं
अपने कर्मों का हिसाब, खुद रखने में ही सार है
मेरे माता पिता मेरे हैं, पत्नी के बन नहीं सकते
पत्नी के माता पिता उसके हैं, मेरे हो नहीं सकते
भावनाओं में बहके खुद को परेशां करना बेकार है
उपेक्षा ना अपेक्षा, रिश्तों का सम्मान स्वीकार है
आजकल एक अजीब, ख़ामोशी मुझे घेरे रहती है
खुद की तरह ही, मुझे भी चुप रहने को कहती है
ना जाने क्यों खुद से, ज्यादा ही सवाल करता हूँ
चाहते हुए भी बोल नहीं पाता, और चुप रहता हूँ
ये अनमोल ज़िन्दगी सिर्फ एक बार ही मिलती है
खुद को यही बात, समझाने की कोशिश रहती है
अपनी ज़िंदगी की कमान अपने हाथ में रहे और
“योगी” जीऊँ तो ऐसे, जैसे आज आखिरी दिन है
वक़्त का तकाज़ा या, जिंदगी की कोई साजिश है
ये बेमौसम की बारिश है, या उम्र की गुजारिश है ।।