उम्र का तकाज़ा
उम्र का तकाज़ा
उम्र की हर दौर का
मजा क्यूं ना लें
जिंदादिल जीने का
सबब क्यूं ना लें
घर चाहे जैसा भी हो
उसमें महका क्यूं ना करें
घर के कोने कोने में
खुलकर हंसा क्यूं ना करें
चाहे जिधर से गुजरें
उधर उदास क्यूं रहें
खुशी से बिंदास होकर
मीठी हलचल क्यूं ना करें
वक्त तों आता जाता रहता
वक्त को क्यूं कोसे
उम्र हमारी भी बीत रही
फिर उम्र की क्यूं सोचें
अनुभवों की पुस्तक से
सबक क्यूं ना पढ़े
अतीत के साये से
मोह माया में क्यूं पड़े
निस्वार्थ प्रेम और निर्मल काया
क्यूं ना हम बनाएं
ईश्वर की निर्मल छाया को
हम माथें से लगाए
उम्र तो ढलनी है
एक दिन ढल जाएगी
क्यूं हम दुखी होकर
मन को दुख पहुंचाए
पापा पुण्य सब यही है रहता
जो इंसान है कमाता
जो भी कर्म किया है होता
वो यही मिल जाता
ढलती उम्र में जिंदगी से
होता क्यूं लगाव है
दरकतीं जाती हैं उम्मीदें
होता काश को लेकर तनाव है
जीवन तो है क्षण भंगुर
पल पल ढलता जाए
जीवन संध्या से फिर
इंसान तू क्यूं घबराएं
एक दिन तो होनी है
निर्बल काया तन कमजोर
फिर क्यूं मचा रखा है
मन में अपने ये शोर
जीवन जो मिला है हमें
वो है बड़ा अनमोल
मिट जाएगी काया
एक दिन माटी के मोल