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गुलशन खम्हारी प्रद्युम्न

Abstract Inspirational

4  

गुलशन खम्हारी प्रद्युम्न

Abstract Inspirational

उल्लाला शतकवीर...१००

उल्लाला शतकवीर...१००

8 mins
300



उल्लाला शतकवीर के लिए(100 उल्लाला 15/13 मात्रा भार)


*1. गणेश जी को समर्पित*

गणपति करिए मुझ पर दया,

     नित-नित करुॅं अभ्यर्थना ।

जीवन सुखमय अब कीजिए,

     पावन हो मम प्रार्थना ।।

*2. माॅं शारदे को समर्पित*

भामा हे विमला ज्ञान दो,

      सत मति दो हे मालिनी ।

जन-जन का अब कल्याण कर,

      वर दो हे मॉं शालिनी ।।

*3. मंच को समर्पित*

अद्भुत-अनुपम यह मंच है,

      गढ़ते रचते हैं सभी ।

लेखन उल्लाला चल रहा,

     चलिए लिखते हैं अभी ।।

*4. गुरुदेव जी को समर्पित*

नमनउॅं गुरुवर मैं आपको,

      तुम ही हो मम ज्ञानदा ।

अवनति मूर्च्छा तजकर करो,

     निर्मल मुझको मानदा ।।

*5. स्वयं को समर्पित*

करता निज को अर्पण सदा,

     दिव्यमयी हो साधना ।

जग का दुख अरु तम दूर हो,

     अर्थमयी मम कामना ।।

*6. मानव*

मानव जीवन अनमोल है,

     धरिए नव सद्भावना ।

शिव से उपजे जन हैं सभी,

     पशु से नर की संभावना ।।

*7. बंधन*

बंधन देता दुख ही सदा,

     माया रिश्तों का यहाॅं ।

नर तन जन्मे प्रभु सब सहे,

    होगा ऐसा जग कहॉं ।।

*8. होली*

होली पावन त्योहार है,

    हिल-मिल कर सब संग हो ।

सबको रंगे सम भाव से,

    ऐसा सुंदर रंग हो ।।

*9. निर्मल*

निर्मल कल-कल करती नदी,

      बहती निश्छल भाव से ।

कैसे सबको निज धारती,

      देखो तुम भी चाव से ।।

*10. करुणा*

करुणा सजती है कोख में,

     जननी पावन धारणा ।

ममता समता सी साधना,

     अर्पित करती कर्मणा ।।

*11. अनुपम*

अनुपम अविरल गंगा यहाॅं,

     हिय से निकली वंदना ।

धरती धुलती मनभावनी,

     धरती पावन चंदना ।।

 *12. बाबुल*

भार्या बाबुल नित खोजती,

      सहती नित सहधर्मिणी ।

तनया तजकर वह जिन्दगी,

      कर्म करे अब कर्मिणी ।।

*13. बाती*

जीवन जलती बाती बने,

      मानवता का तेल हो ।

मन का मन से बस प्रेम हो,

      मन‌ में सबका मेल हो ।।

*14.कल-कल*

पाहन‌ छलती शैवालिनी,

       कल-कल करती नाद है।

सदियों से सहती गंदगी,

       अंतस में उन्माद है ।।

*15. उड़ना*

मन खग बन उड़ना चाहता,

     डरता छलिया जाल से ।

चिड़िया मरती नित-नित जहॉं,

     सहमे खग के हाल से ।।

*16. भारत*

वीरों से शोभित मेदिनी,

      भारत भू का हर्ष है ।

 शरणागत को स्वीकारता,

      कण-कण में उत्कर्ष है ।।

*17. राहें*

राहें कठिनाई से भरी,

     नित-नित देते सीख जी ।

कर्मों को तजकर भोगता,

     मानव केवल भीख जी ।।

*18. कंटक*

कंटक चुभने से कोसते,

      पुष्पित वन क्यों आज रे ।

 दिनकर रज से कर सामना,

      महका है गिरि-राज रे ।।

*19. चलना*

चलना हो भंवर बीच में,

     स्वीकृत हो रण नाद को ।

बहते दृग-जल से जान लो ,

    गुंजित होते अनुनाद को ।।

*20. बोली*

मधुरम बोली नित बोलिए,

        हिय में मिश्री घोलती ।

खोकर पाना पल में मानिए,

        रेखा कर की बोलती ।।

*21.अभिलाषा*

अभिलाषा मन की जानती,

    मॉं सुत को पहचानती ।

 वृद्धाश्रम क्यों फिर भेजते,    

    जो सबको सम्मानती ।।

*22.पूजन*

पूजन वंदन सब कीजिए,

    लेकिन धरिए ध्यान जी ।

रुपया सब कुछ देता नहीं,

    सबसे बढ़कर ज्ञान जी ।।

*23.बीमारी*

बीमारी सुख को छीनती ,

    भरती तन में संघर्ष है ।

साधो तप प्राणायाम को,

    मिलता चरमोत्कर्ष है ।।

*24.मिलकर*

सागर में मिलती बूॅंद भी,

    गागर संगति जानती ।

मिलकर जीना नद सीख दे,

    पावन सी मति मानती ।।

*25.सपने*

सपने देते सुख रोज ही,

   पर इनका क्या मोल जी ।

दिनकर लाता नित भोर को,

   कार्मिकता में तोल जी ।।

*26.शीतल*

शीतल जल जीवन दायिनी,

     कल-कल सुर पथ गामिनी।

मरु को करती तुम उर्वरा,

     हे रज कण धर वाहिनी ।।

*27.आपस*

मिलना आपस में सीखिए,

     पादप सह नत मंजरी।

 एकल जीवन को जानिए,     

     मतवाली सी कुंजरी ।।

*28.तुलसी*

बिन तुलसी पूजन हो नहीं ,

     सत्कारी सुत गाथ में ।

श्रद्धा आस्था मन सींचती,

     देती सत मति साथ में ।।

*29.परिभाषा*

मानव में हो सद्भावना,

    पावन‌ जीवन जान लो ।

जन की परिभाषा ग्रंथ में ,

    नश्वर तन है मान लो ।।

*30.धरती*

धरती धारे सत आज भी,

    सुमिरन करिए वेद को ।

हमसे उपजे सब धर्म हैं,

    उलटो जब ऋग्वेद को ।।

*31. चूड़ी*

खन-खन करती हैं चूड़ियाॅं,

    नैना तकती राह रे ।

प्रियतम अब आलिंगन करो,

    समझो प्यासी चाह रे ।।

*32. पायल*

पग-पग तुमको मैं ढूॅंढ़ती,

    तुम बिन फीका चाल है ।

रुनझुन गाता दिल भी नहीं,   

    पायल की हड़ताल है,

*33. वेणी*

उलझे हैं वेणी साजना,

    सुलझाओ लट प्यार से ।

गजरा महके बाजार में,

    ले आना इतवार से ।।

*34.माला*

माला सुंदर होती भली,

    चम-चम चमके हार सी ।

पुलकित पिय पुष्पित बाग में ,

    सजनी हो उपहार सी ।।

*35. काजल*

काजल कलुषित होती नहीं,

   बोले अब रुपयौवना ।

पावन मन से सब शुद्ध हो,

   देखो अंतर्भावना ।।

*36.माणिक*

माणिक पन्ना सम रत्न को,

     धरिए ग्रीवा हार सा ।

ज्योतिष ज्ञानी तब ज्ञान दे,

     दे दो वह उपहार सा ।।

*37.गढ़ना*

गढ़ना जीवन को ताप से,

    ताप बिना संताप है ।

हेमेटाइट मल त्याग कर,

    बनता खड्ग प्रताप है ।।

*38.थाती*

रखना थाती संभाल कर,

    बनता यह इतिहास है ।

सीमा पर लड़ते सैन्य से,

    गृह सुख का आभास है ।।

*39.भावी*

भावी जीवन कैसा रहे,

    देखो नैना खोल कर ।

बिन संकल्प नियम कंडिका,

   नृप रोए कल्लोल कर ।।

*40.पारस*

बनते पारस मणि जीव ही,

   अंतर्निहित विचार से ।

पर दुख को निज दुख मानता,

   जीता सुसदाचार से ।।

*41.वैदिक*

वैदिक ग्रंथों की साधना,

    करता मन को शान्त है ।

कैसे हो रक्षण धर्म का,

    चहुॅं दिग फैला क्लान्त है ।।

*42.गुरुकुल*

गुरुकुल विद्या के केंद्र थे,

     नूतन पद्धति आ गया ।

जकड़े हम रुढ़ियों से कभी,

     अंग्रेजी सब खा गया ।।

*43.रिमझिम*

रिमझिम पानी की धार को,

    औषध पावन जानिए ।

हरता दुस्सह हर पीर जो,

    दिव्यम उसको मानिए ।।

*44.पाठक*

पाठक पढ़ता बस शब्द को,

     श्रोता सुनता नित्य ही ।

कैसा बंधन है व्याह का,

     तड़पी अब तक सत्य ही ।।

*45.चिट्ठी*

चिट्ठी भेजी थी साजना,

    मिलता तुमको है नहीं।

जिसका भी हो खत फेंक दो,

    मतलब हमको है नहीं ।।

*46.विपदा*

विपदा सब पर आती सदा,

     घबराकर भागो नहीं ।

आखिर रण को फिर छोड़के,

     जीवन में जागो नहीं ।।

*47.लीला*

लीला रचते भगवान तो,

     रचना जीवन सार है ।

जीता वो ही इन्सान है,

    जिसने झेला मार है ।।

*48.गोदी*

गोदी करके माता चली,

    बॉंधे सुत को पीठ में ।

तुम्हीं से खुलता भाग्य है,

    रखना हमको दीठ में ।।

*49.तुलना*

तुलना करना निज श्रेष्ठ से,

    हासिल होगा लक्ष्य जी ।

 लड़कर ही मिलता सिंह को,

    आता मुख में भक्ष्य जी ।।

*50.कीचड़*

कीचड़ से खिलता पद्म है,

    पहचानो तो मूल्य को ।

कोई अपना होता नहीं,

   तुलना करिए तुल्य को ।।

*51.चाकर*

नौकर चाकर सब राखिए,

    हासिल धन से सब नहीं ।

मेहनती पाता कर्म से,

    मिलता आखिर कब नहीं ।।

*52.भरती*

भरती करुणा मॉं भारती,

      वीरों को निज गोद में ।

मिटते तन से हो पावनी,

       रोए देखो मोद में ।।

*53.जगती*

जगती माता ही भोर में,

     सबसे पहले जान लो ।

करती अपने ही कर्म को,

     शिक्षित उसको मान लो ।।

*54. बचपन*

बचपन सुंदर सुख देत है,

      सुमिरन करिए मौन में ।

हॅंसकर आए मुस्कान ही,

      चढ़लो तुम सागौन में ।।     

*55. झरना*

झरना निकसे कर गर्जना,

    सीना पर्वत चीर के ।

दरिया होती अंतस सदा,

     देखो जानो पीर के ।।

*56.वाणी*

वाणी रखिए उन बाल सा,

    तब मन में मत बैर हो ।

चलिए अपने ही राह में,

    धरती में बस पैर हो ।।

*57.पानी*

पानी रखिए सह शुद्धता,

     कितने गुण के खान ये ।

विलेयता सह मन तृप्तता,

     जीवों के हैं जान ये ।।

*58.माया*

माया का करिए त्याग जी,

    हरती सारे हर्ष को ।

तजकर पाया सबने यहॉं,

    पावन उस उत्कर्ष को ।।

*59.ज्वाला*

ज्वाला दाहक होती सदा,

     पीड़ा निकसे नीर से ।

जलती जब भी कोई चिता,

     पकड़े सीधे चीर से ।।

*60.पनपे*

खुशियॉं पनपे बस प्यार में,

    संभालो मणि दिव्य को ।

मजबूती ऑंगन में रहे,

    बनते गृह सम भव्य को ।।

*61.संकट*

संकट देता है काल ही,

      कोरोना को देख लो ।

सबसे बढ़कर है जिन्दगी, 

     लिख दो अब उल्लेख लो ।।

*62.औषधि*

औषधि दुख का उपचार है,

       पूछो उस बीमार से ।

विद्या यह तो प्राचीन है,

       जानो तुम गंधार से ।।

*63. कड़वी*

कड़वी बातें दुख दे सदा,

    धरिए तुम सद्भाव को ।

पीड़ा सबको इससे मिला,

    देखो अंतस घाव को ।।

*64.कलयुग*

कलयुग का कैसा खेल रे,

     दुबके मानव नीड़ में ।

ढूॅंढ़े अपनों को दूर से,

     लाशों के उस भीड़ में ।।

*65. खिचड़ी*

खिचड़ी बनती है मेल से,

     कण-कण में बस प्यार हो ।

खिचड़ी रिश्तों में लुप्त है,

     भावों में मत रार हो ।।

*66. मारुति*

छम-छम कर बाजत जा रही,

     पुलकित मन से पैंजनी ।

मारुति मम सुत हनुमान है,

     कहती माता अंजनी ।।

*67. कॉंसा*

मिलकर तॉंबा में टिन सही,

    घुलमिल बनता कॉंस्य है ।

देता उत्तम तब जोड़ को,

    इसमें क्या अब हास्य है ।।

*68.पनघट*

पनघट में पनहारन यहॉं,

     गागर सिर में धारती ।

पानी छलके पग-पग सखी,

     प्यासों को है तारती ।।

*69.ऑंचल*

ऑंचल मॉं की सुख देत है,

     रख लूॅं मैं निज माथ को ।

छूकर पाऊॅं आशीष मैं,

     थामा जिसने हाथ को ।।

*70. मधुबन*

मधुबन महका है स्नेह से,

     समझो इसके भाव को ।

अक्सर घर बिखरे हैं यहॉं,

     देना मत अलगाव को ।।

*71. शुभदा*

माता शुभदा है सुरसती,

     सबको देती ज्ञान है ।

रखिए मन में विद्या सदा,

     मिलता तब सम्मान है ।।

*72. गहरी*

गहरी खाई डर देत है,

   जाना मत तुम पास में ।

छीने कितने हैं प्राण को,

   मरने के अहसास में ।।

*73. भाषा*

भाषा सुंदर नित बोलिए,

    सजती इसमें भाव है ।

बोले जब-जब वो बाॅंध हैं,

    नदियों में अटकाव है ।।

*74. मंगल*

सबका करिए मंगल सदा,

     होगा तब कल्याण जी ।

मरकर मिलते क्यों बुद्ध को,

     पावन परिनिर्वाण जी ।‌।

*75. साबुन*

साबुन निज में मल घोलते,

     निर्मल करते वस्त्र को ।

मानव ने जग जीता यहाॅं,

      देखो धारे शस्त्र को ।।

*76.यमुना*

यमुना के तट पर झूमते,

     दिखते तब घनश्याम हैं ।

हर्षित कल-कल मुस्कान में,

     कान्हा के हरिधाम हैं ।।

*77.रोचक*

रोचक अनुपम उन तथ्य से,

     मिलता सबको ज्ञान है ।

बनता इनसे इतिहास भी,   

     समझो यह संज्ञान है ।।

*78.अंबर*

अंबर सम पावन प्रेम हो,

     समझे दिल के भाव को ।

रिश्ते जोड़े हिय से सभी,

     तोड़े सब अटकाव को ।।

*79.रेखा* 

पढ़िए रेखा के ज्ञान को,

    जैसे कोई सार हो ।

मेहनती पाए मान को,

   भाग्योदय आधार हो ।।

*80.तीरथ*

तीरथ तर्पण नित कीजिए,

       होता पावन धर्म है ।

मानव खुद को समझे नहीं,

       कहिए कैसा मर्म है ।।

*81.मुखिया* 

मुखिया केवल नेता नहीं,

    यह तो घर का मान है ।

सबको बाॅंधे सुत प्रेम से,

    उसमें सबकी जान है ।।

*82 .गुड़िया*

गुड़िया बाबुल की बंदगी,

     चहके बनके खग वही ।

बनके घर की वह शान भी, 

    नापे नित-नित पग वही ।।

*83. रचना*

रचना रचिए सद्भाव से,

    कलमों में हो धार जी ।

केवल रण होता है नहीं,

   धरिए यह तलवार जी ।।

*84. जननी*

जननी जनती सुत ही सदा,

     देखे सब सम नेत्र से । 

 माता सहती हर दर्द को,   

    सुनिए हर उस क्षेत्र से ।।

*85.सविता*

सविता सुंदर रज भेजता,

    हर दिन पावन भाव से ।

सबका धरता वह पुण्य ही,

   मिलता बस सद्भाव से ।।

*86.शोणित*

बहते शोणित से पूछिए,

    होता कैसा रंग है ।

हमने देखा हर धर्म को,

   किसका कैसा संग है ।।

*87.साधक*

साधक साधो नित प्रेम को,

    जीवन का यह मर्म है ।

मिलता आखिर बस मौत है,

    किसका बस सत्कर्म है ।।

*88.नीलम*

नीलम नीले माणिक्य को,

    धरिए इसको ध्यान से ।

होता हासिल कुछ भी नहीं,

    मिलता केवल ज्ञान से।।

*89.नवधा*

नवधा रामायण से मिला,

    सतयुग को आधार जी।

धारण करिए बस सत्य को,

    होगा प्रभु अवतार जी ।।

*90. काली*

काली चण्डी को जान लो,

    नारी के यह नाम हैं ।

पूजा हो घर में नार का,

     इनसे गृह भी धाम हैं ।।

*91-भीनी*

भीनी मादकता बोध का,

     खुशबू जैसी गंध है ।

धरती पर पड़ती बूॅंद से,

     कोई तो संबंध है ।।

*92-मानस*

मानस मनु के संतान हैं,

     जानो अब निज धर्म को ।

मानव मानव को जान ले,

    इसमें ही वो मर्म को ।।

*93-टेसू* 

टेसू से बनते रंग ज्यों,

     जीवन का यह सार है ।

 मौसम सी बस बदलाव हो,

     बाकी क्यों तकरार है ।।

*94-आतप*

आतप धरती की दाहती,

      पर्यावरणी नाद से ।

 सबको दे पर-उपकार ही,   

     जानो वन अपवाद से ।।

*95-कारण*

होगा कारण कुछ जानिए,

     सबको हासिल दुख नहीं ।

राजा होता अब रंक भी,

     मिलता केवल सुख नहीं ।।

*96-अचला*

अचला धारे बस प्रेम से,

    सबको राखे भाव से ।

पापी धर्मी सब साथ में,

    जानो केवल हाव से ।।

*97-गुंजन*

गुंजन-गुंफन भौंरा करे,

     डाली-डाली डोल कर । 

सीना छलनी हो पुष्प का,

    मीठी-मीठी बोल कर ।।

*98-तारा*

 तारा जगमग आकाश में, 

    ताके ये जन-जन सभी ।

मेरा अपना भी था कभी,

    देखो तो मन-मन सभी ।।

*99-चातक*

चातक तरसे हर बूॅंद को,

     दे दो मेरे भाग रे ।

छीना सबकुछ मुझसे यहॉं,

     मानव अब तो जाग रे ।।

*100-उल्लाला*

उल्लाला पावन छंद को,

     साधो मात्रा ज्ञान से ।

 पंद्रह-तेरह धारित रहे, 

    सुर-लय के उस मान‌ से ।।



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