उल्लाला शतकवीर...१००
उल्लाला शतकवीर...१००
उल्लाला शतकवीर के लिए(100 उल्लाला 15/13 मात्रा भार)
*1. गणेश जी को समर्पित*
गणपति करिए मुझ पर दया,
नित-नित करुॅं अभ्यर्थना ।
जीवन सुखमय अब कीजिए,
पावन हो मम प्रार्थना ।।
*2. माॅं शारदे को समर्पित*
भामा हे विमला ज्ञान दो,
सत मति दो हे मालिनी ।
जन-जन का अब कल्याण कर,
वर दो हे मॉं शालिनी ।।
*3. मंच को समर्पित*
अद्भुत-अनुपम यह मंच है,
गढ़ते रचते हैं सभी ।
लेखन उल्लाला चल रहा,
चलिए लिखते हैं अभी ।।
*4. गुरुदेव जी को समर्पित*
नमनउॅं गुरुवर मैं आपको,
तुम ही हो मम ज्ञानदा ।
अवनति मूर्च्छा तजकर करो,
निर्मल मुझको मानदा ।।
*5. स्वयं को समर्पित*
करता निज को अर्पण सदा,
दिव्यमयी हो साधना ।
जग का दुख अरु तम दूर हो,
अर्थमयी मम कामना ।।
*6. मानव*
मानव जीवन अनमोल है,
धरिए नव सद्भावना ।
शिव से उपजे जन हैं सभी,
पशु से नर की संभावना ।।
*7. बंधन*
बंधन देता दुख ही सदा,
माया रिश्तों का यहाॅं ।
नर तन जन्मे प्रभु सब सहे,
होगा ऐसा जग कहॉं ।।
*8. होली*
होली पावन त्योहार है,
हिल-मिल कर सब संग हो ।
सबको रंगे सम भाव से,
ऐसा सुंदर रंग हो ।।
*9. निर्मल*
निर्मल कल-कल करती नदी,
बहती निश्छल भाव से ।
कैसे सबको निज धारती,
देखो तुम भी चाव से ।।
*10. करुणा*
करुणा सजती है कोख में,
जननी पावन धारणा ।
ममता समता सी साधना,
अर्पित करती कर्मणा ।।
*11. अनुपम*
अनुपम अविरल गंगा यहाॅं,
हिय से निकली वंदना ।
धरती धुलती मनभावनी,
धरती पावन चंदना ।।
*12. बाबुल*
भार्या बाबुल नित खोजती,
सहती नित सहधर्मिणी ।
तनया तजकर वह जिन्दगी,
कर्म करे अब कर्मिणी ।।
*13. बाती*
जीवन जलती बाती बने,
मानवता का तेल हो ।
मन का मन से बस प्रेम हो,
मन में सबका मेल हो ।।
*14.कल-कल*
पाहन छलती शैवालिनी,
कल-कल करती नाद है।
सदियों से सहती गंदगी,
अंतस में उन्माद है ।।
*15. उड़ना*
मन खग बन उड़ना चाहता,
डरता छलिया जाल से ।
चिड़िया मरती नित-नित जहॉं,
सहमे खग के हाल से ।।
*16. भारत*
वीरों से शोभित मेदिनी,
भारत भू का हर्ष है ।
शरणागत को स्वीकारता,
कण-कण में उत्कर्ष है ।।
*17. राहें*
राहें कठिनाई से भरी,
नित-नित देते सीख जी ।
कर्मों को तजकर भोगता,
मानव केवल भीख जी ।।
*18. कंटक*
कंटक चुभने से कोसते,
पुष्पित वन क्यों आज रे ।
दिनकर रज से कर सामना,
महका है गिरि-राज रे ।।
*19. चलना*
चलना हो भंवर बीच में,
स्वीकृत हो रण नाद को ।
बहते दृग-जल से जान लो ,
गुंजित होते अनुनाद को ।।
*20. बोली*
मधुरम बोली नित बोलिए,
हिय में मिश्री घोलती ।
खोकर पाना पल में मानिए,
रेखा कर की बोलती ।।
*21.अभिलाषा*
अभिलाषा मन की जानती,
मॉं सुत को पहचानती ।
वृद्धाश्रम क्यों फिर भेजते,
जो सबको सम्मानती ।।
*22.पूजन*
पूजन वंदन सब कीजिए,
लेकिन धरिए ध्यान जी ।
रुपया सब कुछ देता नहीं,
सबसे बढ़कर ज्ञान जी ।।
*23.बीमारी*
बीमारी सुख को छीनती ,
भरती तन में संघर्ष है ।
साधो तप प्राणायाम को,
मिलता चरमोत्कर्ष है ।।
*24.मिलकर*
सागर में मिलती बूॅंद भी,
गागर संगति जानती ।
मिलकर जीना नद सीख दे,
पावन सी मति मानती ।।
*25.सपने*
सपने देते सुख रोज ही,
पर इनका क्या मोल जी ।
दिनकर लाता नित भोर को,
कार्मिकता में तोल जी ।।
*26.शीतल*
शीतल जल जीवन दायिनी,
कल-कल सुर पथ गामिनी।
मरु को करती तुम उर्वरा,
हे रज कण धर वाहिनी ।।
*27.आपस*
मिलना आपस में सीखिए,
पादप सह नत मंजरी।
एकल जीवन को जानिए,
मतवाली सी कुंजरी ।।
*28.तुलसी*
बिन तुलसी पूजन हो नहीं ,
सत्कारी सुत गाथ में ।
श्रद्धा आस्था मन सींचती,
देती सत मति साथ में ।।
*29.परिभाषा*
मानव में हो सद्भावना,
पावन जीवन जान लो ।
जन की परिभाषा ग्रंथ में ,
नश्वर तन है मान लो ।।
*30.धरती*
धरती धारे सत आज भी,
सुमिरन करिए वेद को ।
हमसे उपजे सब धर्म हैं,
उलटो जब ऋग्वेद को ।।
*31. चूड़ी*
खन-खन करती हैं चूड़ियाॅं,
नैना तकती राह रे ।
प्रियतम अब आलिंगन करो,
समझो प्यासी चाह रे ।।
*32. पायल*
पग-पग तुमको मैं ढूॅंढ़ती,
तुम बिन फीका चाल है ।
रुनझुन गाता दिल भी नहीं,
पायल की हड़ताल है,
*33. वेणी*
उलझे हैं वेणी साजना,
सुलझाओ लट प्यार से ।
गजरा महके बाजार में,
ले आना इतवार से ।।
*34.माला*
माला सुंदर होती भली,
चम-चम चमके हार सी ।
पुलकित पिय पुष्पित बाग में ,
सजनी हो उपहार सी ।।
*35. काजल*
काजल कलुषित होती नहीं,
बोले अब रुपयौवना ।
पावन मन से सब शुद्ध हो,
देखो अंतर्भावना ।।
*36.माणिक*
माणिक पन्ना सम रत्न को,
धरिए ग्रीवा हार सा ।
ज्योतिष ज्ञानी तब ज्ञान दे,
दे दो वह उपहार सा ।।
*37.गढ़ना*
गढ़ना जीवन को ताप से,
ताप बिना संताप है ।
हेमेटाइट मल त्याग कर,
बनता खड्ग प्रताप है ।।
*38.थाती*
रखना थाती संभाल कर,
बनता यह इतिहास है ।
सीमा पर लड़ते सैन्य से,
गृह सुख का आभास है ।।
*39.भावी*
भावी जीवन कैसा रहे,
देखो नैना खोल कर ।
बिन संकल्प नियम कंडिका,
नृप रोए कल्लोल कर ।।
*40.पारस*
बनते पारस मणि जीव ही,
अंतर्निहित विचार से ।
पर दुख को निज दुख मानता,
जीता सुसदाचार से ।।
*41.वैदिक*
वैदिक ग्रंथों की साधना,
करता मन को शान्त है ।
कैसे हो रक्षण धर्म का,
चहुॅं दिग फैला क्लान्त है ।।
*42.गुरुकुल*
गुरुकुल विद्या के केंद्र थे,
नूतन पद्धति आ गया ।
जकड़े हम रुढ़ियों से कभी,
अंग्रेजी सब खा गया ।।
*43.रिमझिम*
रिमझिम पानी की धार को,
औषध पावन जानिए ।
हरता दुस्सह हर पीर जो,
दिव्यम उसको मानिए ।।
*44.पाठक*
पाठक पढ़ता बस शब्द को,
श्रोता सुनता नित्य ही ।
कैसा बंधन है व्याह का,
तड़पी अब तक सत्य ही ।।
*45.चिट्ठी*
चिट्ठी भेजी थी साजना,
मिलता तुमको है नहीं।
जिसका भी हो खत फेंक दो,
मतलब हमको है नहीं ।।
*46.विपदा*
विपदा सब पर आती सदा,
घबराकर भागो नहीं ।
आखिर रण को फिर छोड़के,
जीवन में जागो नहीं ।।
*47.लीला*
लीला रचते भगवान तो,
रचना जीवन सार है ।
जीता वो ही इन्सान है,
जिसने झेला मार है ।।
*48.गोदी*
गोदी करके माता चली,
बॉंधे सुत को पीठ में ।
तुम्हीं से खुलता भाग्य है,
रखना हमको दीठ में ।।
*49.तुलना*
तुलना करना निज श्रेष्ठ से,
हासिल होगा लक्ष्य जी ।
लड़कर ही मिलता सिंह को,
आता मुख में भक्ष्य जी ।।
*50.कीचड़*
कीचड़ से खिलता पद्म है,
पहचानो तो मूल्य को ।
कोई अपना होता नहीं,
तुलना करिए तुल्य को ।।
*51.चाकर*
नौकर चाकर सब राखिए,
हासिल धन से सब नहीं ।
मेहनती पाता कर्म से,
मिलता आखिर कब नहीं ।।
*52.भरती*
भरती करुणा मॉं भारती,
वीरों को निज गोद में ।
मिटते तन से हो पावनी,
रोए देखो मोद में ।।
*53.जगती*
जगती माता ही भोर में,
सबसे पहले जान लो ।
करती अपने ही कर्म को,
शिक्षित उसको मान लो ।।
*54. बचपन*
बचपन सुंदर सुख देत है,
सुमिरन करिए मौन में ।
हॅंसकर आए मुस्कान ही,
चढ़लो तुम सागौन में ।।
*55. झरना*
झरना निकसे कर गर्जना,
सीना पर्वत चीर के ।
दरिया होती अंतस सदा,
देखो जानो पीर के ।।
*56.वाणी*
वाणी रखिए उन बाल सा,
तब मन में मत बैर हो ।
चलिए अपने ही राह में,
धरती में बस पैर हो ।।
*57.पानी*
पानी रखिए सह शुद्धता,
कितने गुण के खान ये ।
विलेयता सह मन तृप्तता,
जीवों के हैं जान ये ।।
*58.माया*
माया का करिए त्याग जी,
हरती सारे हर्ष को ।
तजकर पाया सबने यहॉं,
पावन उस उत्कर्ष को ।।
*59.ज्वाला*
ज्वाला दाहक होती सदा,
पीड़ा निकसे नीर से ।
जलती जब भी कोई चिता,
पकड़े सीधे चीर से ।।
*60.पनपे*
खुशियॉं पनपे बस प्यार में,
संभालो मणि दिव्य को ।
मजबूती ऑंगन में रहे,
बनते गृह सम भव्य को ।।
*61.संकट*
संकट देता है काल ही,
कोरोना को देख लो ।
सबसे बढ़कर है जिन्दगी,
लिख दो अब उल्लेख लो ।।
*62.औषधि*
औषधि दुख का उपचार है,
पूछो उस बीमार से ।
विद्या यह तो प्राचीन है,
जानो तुम गंधार से ।।
*63. कड़वी*
कड़वी बातें दुख दे सदा,
धरिए तुम सद्भाव को ।
पीड़ा सबको इससे मिला,
देखो अंतस घाव को ।।
*64.कलयुग*
कलयुग का कैसा खेल रे,
दुबके मानव नीड़ में ।
ढूॅंढ़े अपनों को दूर से,
लाशों के उस भीड़ में ।।
*65. खिचड़ी*
खिचड़ी बनती है मेल से,
कण-कण में बस प्यार हो ।
खिचड़ी रिश्तों में लुप्त है,
भावों में मत रार हो ।।
*66. मारुति*
छम-छम कर बाजत जा रही,
पुलकित मन से पैंजनी ।
मारुति मम सुत हनुमान है,
कहती माता अंजनी ।।
*67. कॉंसा*
मिलकर तॉंबा में टिन सही,
घुलमिल बनता कॉंस्य है ।
देता उत्तम तब जोड़ को,
इसमें क्या अब हास्य है ।।
*68.पनघट*
पनघट में पनहारन यहॉं,
गागर सिर में धारती ।
पानी छलके पग-पग सखी,
प्यासों को है तारती ।।
*69.ऑंचल*
ऑंचल मॉं की सुख देत है,
रख लूॅं मैं निज माथ को ।
छूकर पाऊॅं आशीष मैं,
थामा जिसने हाथ को ।।
*70. मधुबन*
मधुबन महका है स्नेह से,
समझो इसके भाव को ।
अक्सर घर बिखरे हैं यहॉं,
देना मत अलगाव को ।।
*71. शुभदा*
माता शुभदा है सुरसती,
सबको देती ज्ञान है ।
रखिए मन में विद्या सदा,
मिलता तब सम्मान है ।।
*72. गहरी*
गहरी खाई डर देत है,
जाना मत तुम पास में ।
छीने कितने हैं प्राण को,
मरने के अहसास में ।।
*73. भाषा*
भाषा सुंदर नित बोलिए,
सजती इसमें भाव है ।
बोले जब-जब वो बाॅंध हैं,
नदियों में अटकाव है ।।
*74. मंगल*
सबका करिए मंगल सदा,
होगा तब कल्याण जी ।
मरकर मिलते क्यों बुद्ध को,
पावन परिनिर्वाण जी ।।
*75. साबुन*
साबुन निज में मल घोलते,
निर्मल करते वस्त्र को ।
मानव ने जग जीता यहाॅं,
देखो धारे शस्त्र को ।।
*76.यमुना*
यमुना के तट पर झूमते,
दिखते तब घनश्याम हैं ।
हर्षित कल-कल मुस्कान में,
कान्हा के हरिधाम हैं ।।
*77.रोचक*
रोचक अनुपम उन तथ्य से,
मिलता सबको ज्ञान है ।
बनता इनसे इतिहास भी,
समझो यह संज्ञान है ।।
*78.अंबर*
अंबर सम पावन प्रेम हो,
समझे दिल के भाव को ।
रिश्ते जोड़े हिय से सभी,
तोड़े सब अटकाव को ।।
*79.रेखा*
पढ़िए रेखा के ज्ञान को,
जैसे कोई सार हो ।
मेहनती पाए मान को,
भाग्योदय आधार हो ।।
*80.तीरथ*
तीरथ तर्पण नित कीजिए,
होता पावन धर्म है ।
मानव खुद को समझे नहीं,
कहिए कैसा मर्म है ।।
*81.मुखिया*
मुखिया केवल नेता नहीं,
यह तो घर का मान है ।
सबको बाॅंधे सुत प्रेम से,
उसमें सबकी जान है ।।
*82 .गुड़िया*
गुड़िया बाबुल की बंदगी,
चहके बनके खग वही ।
बनके घर की वह शान भी,
नापे नित-नित पग वही ।।
*83. रचना*
रचना रचिए सद्भाव से,
कलमों में हो धार जी ।
केवल रण होता है नहीं,
धरिए यह तलवार जी ।।
*84. जननी*
जननी जनती सुत ही सदा,
देखे सब सम नेत्र से ।
माता सहती हर दर्द को,
सुनिए हर उस क्षेत्र से ।।
*85.सविता*
सविता सुंदर रज भेजता,
हर दिन पावन भाव से ।
सबका धरता वह पुण्य ही,
मिलता बस सद्भाव से ।।
*86.शोणित*
बहते शोणित से पूछिए,
होता कैसा रंग है ।
हमने देखा हर धर्म को,
किसका कैसा संग है ।।
*87.साधक*
साधक साधो नित प्रेम को,
जीवन का यह मर्म है ।
मिलता आखिर बस मौत है,
किसका बस सत्कर्म है ।।
*88.नीलम*
नीलम नीले माणिक्य को,
धरिए इसको ध्यान से ।
होता हासिल कुछ भी नहीं,
मिलता केवल ज्ञान से।।
*89.नवधा*
नवधा रामायण से मिला,
सतयुग को आधार जी।
धारण करिए बस सत्य को,
होगा प्रभु अवतार जी ।।
*90. काली*
काली चण्डी को जान लो,
नारी के यह नाम हैं ।
पूजा हो घर में नार का,
इनसे गृह भी धाम हैं ।।
*91-भीनी*
भीनी मादकता बोध का,
खुशबू जैसी गंध है ।
धरती पर पड़ती बूॅंद से,
कोई तो संबंध है ।।
*92-मानस*
मानस मनु के संतान हैं,
जानो अब निज धर्म को ।
मानव मानव को जान ले,
इसमें ही वो मर्म को ।।
*93-टेसू*
टेसू से बनते रंग ज्यों,
जीवन का यह सार है ।
मौसम सी बस बदलाव हो,
बाकी क्यों तकरार है ।।
*94-आतप*
आतप धरती की दाहती,
पर्यावरणी नाद से ।
सबको दे पर-उपकार ही,
जानो वन अपवाद से ।।
*95-कारण*
होगा कारण कुछ जानिए,
सबको हासिल दुख नहीं ।
राजा होता अब रंक भी,
मिलता केवल सुख नहीं ।।
*96-अचला*
अचला धारे बस प्रेम से,
सबको राखे भाव से ।
पापी धर्मी सब साथ में,
जानो केवल हाव से ।।
*97-गुंजन*
गुंजन-गुंफन भौंरा करे,
डाली-डाली डोल कर ।
सीना छलनी हो पुष्प का,
मीठी-मीठी बोल कर ।।
*98-तारा*
तारा जगमग आकाश में,
ताके ये जन-जन सभी ।
मेरा अपना भी था कभी,
देखो तो मन-मन सभी ।।
*99-चातक*
चातक तरसे हर बूॅंद को,
दे दो मेरे भाग रे ।
छीना सबकुछ मुझसे यहॉं,
मानव अब तो जाग रे ।।
*100-उल्लाला*
उल्लाला पावन छंद को,
साधो मात्रा ज्ञान से ।
पंद्रह-तेरह धारित रहे,
सुर-लय के उस मान से ।।