उजास छाया चहूँओर
उजास छाया चहूँओर
ज़ब भोर भई रोशन हुआ,फैला उजास ओर छोर;
ना कर अपमान प्रकृति का,मन हो जाए विभोर !
बिखर गई, सूर्य की किरनें वृहद नीले आसमान,
हुआ जीवन ज़ब ओजमय, मिटे सारे व्यवधान !
व्यर्थ रैन बिताई सोईके आया जो दिन का राज,
ऐसे कर्म - धर्म की मानकर बन गए हैं सरताज !
शाम की मधुरम बेला संग हुलस गया ये दिल,
मन में उठी टीस और दोनों छूपके से गए मिल !
प्रेमी युगल देते आए हैं एक दूजे को सदा प्रेम विषेश,
यह सौगात तो बस अनमोल है, भाव का एक अवशेष !