उगाते रहिये
उगाते रहिये
जीवन में मुस्कुराते रहिये
उगाते रहिए स्वयं को।
आत्मबल का पौधा रोपिये
बनाइये उसे बरगद
जिसमें न केवल आप बल्कि
आपसे जुड़े सभी निश्चिंत होकर
छोड़ जाए अपनी धूप को
और ले जाए टोकरी भर छाँव।
सिंचित कीजिये अपनी आजु-बाजू की पौध
जो तरस रही है सहानुभूति के लिए
भर कर अपने अकवार में
उन्हें सहलाइये प्यार से
दीजिये प्रोत्साहन ताकि आपके आसपास
खड़े हो जाएँ अपनेपन के मधुबन ।
काट दीजिये ईर्ष्या, अहंकार के जंगल
जो देते हैं हर समय पीड़ा दुःख
जिनकी खरोंचे कसकती हैं
रात-रात भर।
एक गमले में उगाइये
दूसरों का हित चाहने वाला पौधा
जिसमें प्रेम का पानी देना
उसमें अपनेपन का खाद भी चढ़ाना
रख देना घर के दरवाजे प
र
शुभ-लाभ की तरह।
अपने घर के बगीचे के
उन पेड़ों को मत काटिये
जो अब फल नहीं दे रहें हैं
उन्हें खड़े रहने दीजिये चुपचाप
बस दिन में एक बार
कर लीजिये उन्हें प्रेम से स्पर्श ।
अपने आसपास
मत उगाइए नागफनी
खोद दीजिये अपेक्षाओं
की खरपतवार
मत बाँधिए कटीले तारों की बाड़
मिलने दीजिए अपनी जमीन को क्षितिज से।
मत खड़े होइए सम्पन्नता की
बहुमंजली इमारत पर
जहाँ से सब चींटी जैसे नजर आएँ
आइये हम समतल पर समान खड़े हों
एक दूसरे का हाथ थामें।
सींचते रहिये अपने मन को
उल्लास और आशाओं के झरने से
टूट कर गिरने दीजिये
सारी निराशाएँ
पीले पत्तों की तरह
नई कोपलें उगने दीजिये
अपने अंतर्मन में।