Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

Pooja Yadav

Abstract

5.0  

Pooja Yadav

Abstract

उद्विग्न मन

उद्विग्न मन

1 min
376


आज मैं फिर से

अपने ही शव पर रोया।

आज मैंने अपने ही श्वेद कणों में,

अपनी अस्थि को धोया।


आज मैं फिर अपने ही प्राण के,

सिमटे कंपन से सिहर उठा।

आज फिर से मेरे तन ने

मेरी सांसों का बोझा ढोया।


आज फिर से देख रहा हूँ

अपना शोषण और लाचारी।

आज फिर है आंखों में मेरी

बेबसी और चिंगारी।


आज फिर नीची नजरों से

देख रहा हूँ पानी में अंबर,

आज फिर मेरे सम्मान पर

प्रश्नों की हुई बंबारी।


इंद्रसभा में खड़ा हुआ हूँ,

तन पर एक चिथडा ही सही।

मेरे अधिकारों का ज्ञान मुझे है

पा सकता हूँ, प्रयत्न करुंगा नहीं।


मैं शोषित हूँ आज भले

पर मेरे कारण ही तुम हो,

मुझसे निर्मित है परिचय तुम्हारा

तुमसे मेरी पहचान नहीं।


आज भी मैं अपनी बेबसी से

अपने शोषण को पाल रहा हूँ।

आज भी विद्रोह की चिंगारी को

अपने मन से निकाल रहा हूँ।


जानता हूँ, गलत है ये सब सहना

होंठ चुप है, मन उद्विग्न भी है,

पर ये भी सच है कि

इसी शोषण के बल पर,

मैं अपने अस्तित्व को संभाल रहा हूँ।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract