उड़ते पंछी
उड़ते पंछी
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मन कितना स्वार्थी
हो चला है,
घोंसले में दुबक कर
बैठ सोच रहा है,
क्यों,अपना नीड़ बनाने को
दूर देश जा बैठे मेरे
नन्हे उड़ते पंछी ...।
नये ख़्वाब सजाने ,
सपनों में रंग भरने को।
दाना पानी की तलाश में।
आसमान के कैनवास पर,
अरमानों के पंख लगाए
सजाने एक नया घोंसला।
थमाया था उन्हें,
हमने ही तो तूलिका,
भरने ऊँची उड़ान के रंग।
फिर क्यों उदास हो जाती हूँ ,
सूनी डाली और पिंजरे से,
उड़ते पंछियों को देखकर...।