उड़ना मना है ?
उड़ना मना है ?


दिल तो करता है उड़ जाओ
बहत दूर
आसमान के उन इलाका को छू लो
कहीं दूर।
ना जाने क्या है ?
जो खींच लाती है मुझे तेरी और
सिर्फ तेरी और।
अपनी इन पंखों को फैला के
जाना चाहती हूं
अपनी कोई सपनों के पास
फिर से चली आती हूं तेरी और
सिर्फ तेरी और।
ना जाने क्यों है ये सिलसिला
दिल का दिल से रिश्ता है
या फिर
कुछ खोने का डर है ?
क्यों बार बार मेरी आंखे तुझे ही
ढूंढती है
तेरी प्यार भरी बातों को याद करती करती है।
तेरा वो , मेरे पंखों को सेहेलाना ,
कुछ भी ना हो कर भी मुस्कुराना ,
दूर होकर भी महसूस होती है।
जब भी याद आती है
में फिर से चली आती हूं
भूल जाती हूं वो आसमान को
भूल जाती हूं मेरी उड़ान को
ना जाने क्यों बहत अच्छी लगती है
सिर्फ तेरे हो के रहने को
यूं तेरे प्यार में बंदी बन के रहने को
क्या सच में मुझे उड़ना मना है ?