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Dayasagar Dharua

Abstract

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Dayasagar Dharua

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तू और मैं - १

तू और मैं - १

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मैं किसी देहात के पास

गुजरी हुई एक लौती पटरी में

एक वीरान प्लेटफार्म जैसा।


तू उसी पटरी पे दौडने वाली

एक ही लौती ट्रेन जैसी

तू जब जब भी मुझपे रुकती

थोड़ी ही सही

पर भीड़ लग जाती

एक रौनक सी मुझमे लौटती


तेरे साथ रहने की चाह में

मैं अपनी आदतें

बदल ही रहा होता हूँ

और....।


चंद मिनटों के बाद

तू मुझे तन्हा छोड़ जाती

इसी तरह

तेरे छोड़ने की आदत

मुझे लग जाती।


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