तुमने कही देखा है मेरा बचपन...
तुमने कही देखा है मेरा बचपन...
तुमने कहीं देखा है मेरा बचपन
क्या तुमने कहीं देखा है मेरा बचपन.....
वही गलियारे है
वही सिकुड़ी -सी तंग गालियाँ ।
वही खेल का मैदान
जहाँ दोस्ती बड़ी थी और कागज़ी नोटे छोटी ।
आज फिर उसी दहलीज़ पर खड़ा हूँ
पर सब कुछ धुआँ- धुआँ सा है ।
गालियाँ वही, पर ज़िंदादिली गुम सी है
नज़ारे वही, पर ज़िन्दगी गुमशुम सी है ।
किस्से है, पर ख़ामोशी की चादर ओढ़े
सपने है, पर हताश हुए कही सोए ।
क्या तुमने कहीं देखा है मेरा बचपन.....
गुजर गया वह काल है
खोज रहा हूँ इन्ही गलियारों में कहीं
अधूरी बातों में कहीं,
अकेली मुलाकातों में कहीं
वही चंचल, नन्हा -सा बचपन ।
सब कुछ बिखरा - बिखरा सा है
यक़ीनन फिर,
कोई तो होगा ।
देखा होगा मेरा बचपन जिसने
सजाकर रखी होंगी जिसने
वक़्त की मासूमियत भरी दास्ताँ ।
क्या तुमने कहीं देखा है मेरा बचपन.....
