वह 'उफ़' आधा था ...
वह 'उफ़' आधा था ...
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वह 'उफ़' आधा था
पर दर्द ज़्यादा था।
अनकही बातों में जैसे
कोई इरादा था।
न कोई फ़रमाइश थी
न कोई गुज़ारिश
बंद होठों के इशारों में
दर्द को सहारा था।
तफ्तीश हुई,
कुछ राज़ मिले।
ज़ालिम दर्द की कोई आवाज़ मिले।
अनजाना था, बेगाना था
पर यक़ीनन ही सयाना था।
कुछ राज़ दफ़न था
उस दर्द में यक़ीनन
छुपता, छुपाता
कब तक दुनिया से मुँह चुराता ।
अंतिम था सफर
ओढ़े कफ़न ज़रा ज़्यादा था
वह 'उफ़' आधा था ।