STORYMIRROR

Versha Janardan

Drama Romance

4  

Versha Janardan

Drama Romance

"तुममें ही "

"तुममें ही "

1 min
314

पता है तुम्हें, खुद में उलझकर भी,

हमेशा तुममें खोई रहती हूं।


हमेशा दिन भर कहीं - न- कहीं खुद को उलझा लेती हूं,

पर ये रात का अंधेरा और इसकी सन्नाटों से भरी खामोशियां,

तुममें खोने को मजबूर कर देती है।


मेरा अकेलापन हमेशा तुम्हें याद करता है,

और तुममें खोने को मजबूर कर देता है।


नहीं चाहती अपने अकेलेपन में तुम्हें याद करना,

पर पता नहीं, ये मन मेरा, तुम्हारे ही यादों के पन्ने खोलता है।

तुम यादों का सुनहरा पन्ना भी और काला पन्ना भी हो,

जब भी तुम्हारे पन्ने खुलते हैं,

हमेशा कभी आंखें रोती हैं, तो कभी होंठ हंसते हैं।


तुम्हें भूल हमेशा आगे बढ़ना चाहती हूं,

पर तुम हो कि, हमेशा खुद में ही मुझे भुला देते हो।


कितनों से जुड़ चुकीं हूं मैं, न ही चाहती ढूंढना तुम्हें,

पर उन कितनों में हमेशा तुम्हें ढूंढती हूं,

पता नहीं क्यों तुम्हें हमेशा अपने पास चाहती हूं।


चलो मानती हूं, नहीं चाहती भुलाना तुम्हें,

पर मैं, तुममें खोकर खुद को भूलती जा रही हूं।


मैं खुद को भुला कर नहीं, खुद को साथ लेकर आगे बढ़ना चाहती हूं ।

तुम्हें भी, तुम्हारे यादों को भी अपने आंचल में लेकर आगे बढ़ना चाहती हूं


पर मैं हमेशा तुममें खोकर, खुद को भुलाती जा रही हूं।


तुममें खोकर नहीं, खुद को पाकर आगे बढ़ना चाहती हूं



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Drama