Versha Janardan

Abstract

4.5  

Versha Janardan

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"चंद दीवारें "

"चंद दीवारें "

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सब ने दुनिया देखी,

हमने तो चंद दीवारों के फासले तक ना देखें हैं।


उन चंद दीवारों के अंदर रहकर ही,

अपने किताबों के पन्नों को , स्याही से भरते देखा है हमने।


उन चंद दीवारों में, कितनों के जीवन बदलते देखा है हमने,

किसी को दूर जाते, किसी को दूर जाकर पास आते हुए देखा है हमने।


उन चंद दीवारों के अंदर,

ढेर सारी खामोशियां - ही - खामोशियां देखी है हमने।

क्योंकि वहां ना तो कोई अल्फाज़ समझ पाता है और ना ही खामोशियां।

इसलिए वहां अल्फाजों से ज्यादा, खामोशियां भी देखी है हमने।


उन चंद दीवारों में मन व्याकुल सा हो उठता है,

उन चंद दीवारों से बाहर आने का मन करता है,

पर हमेशा खुद को, समाज रुपी जंजीरों से जकड़ा हुआ देखा है हमने।


बाहरी दुनिया की लालसा भी है,

पर बाहरी दुनिया की भीड़ से मन डरता है,

इसलिए हमेशा खुद को, उन चंद दीवारों में देखा है हमने।


इसलिए हम अपनी लेखनी को ,

चंद दीवारों की बातें लिखते हुए देखा है हमने।



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