तुम्हारी यादें !
तुम्हारी यादें !
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कोशिश बहुत की रोकने की
यादों की उफनती लहरों को
पर बहुत ज़िद्दी है ये
और उफनती है, और उफनती है
जैसे लहरें साथ लाती हैं अपने
कोई सीप, कोई नन्हा मोती
उसी तरह तुम्हारी यादें
साथ लाती है
कुछ अनकही -अनछुई खुशबुएँ
और भीग जाती है पलकें
उन यादों में
जैसे कोई लहर छू जाती है पैरों को
और सिहर जाता है
मन एक अनजाने डर से
डर, तुम्हें खोने का डर
सपने टूटने का डर
लहरों में बिखर जाने का डर
पर ए दोस्त !
संजोकर रखूंगी मैं इन यादों को
जैसे रखी है किताब में
गुलाब की सूखी पत्तियाँ
पर उनकी खुशबू भर देती है
ताज़गी से आज भी मुझे
तुम्हारी यादों की खुशबू
उसी तरह महकाती रहेगी मुझे
खोलूंगी जब भी मैं अपनी यादों के पन्ने
और उन पर लिखा होगा तुम्हारा नाम
तुम्हारी यादें !