तुम्हारी सराहना
तुम्हारी सराहना
मैं तुमको सराहता हूं कई बातों के लिए
न जाने कब से याद करता हूं उन खामोश पलों को
तुम्हारा मुस्कराना जो ढकने के लिए आ जाता है
तुम्हारी कई उदासियों को।
तुम फिर भी खुद को हिम्मत दे जाती हो
ताकि हर रोज़ एक नई लड़ाई को जीत लो तुम
कुछ कहती भी हो जो शायद शब्दों में बांध नहीं पाती
फिर भी साफ बता देता है तुम्हारी छिपी चिंताओं को।
वक़्त से तुम मिलती हो
कुछ वक़्त और मांगकर
ताकि अपने सभी सवालों के हल मिल जाए तुम्हें
और तुम थोड़ी और इत्मिनान से बैठ सको वक़्त के पास।
खामोश सी किसी गली में
तुम शोर सी सुनाई देती हो मुझे
वो शोर जिसें मैं खुद के अंदर समेटे रख लेना चाहता हूं
क्योंकि कई बार मैं चाहता हूं
अकेलेपन में भी तुमको सुनते रहना।