तुम्हारे ख़त
तुम्हारे ख़त
मत गुनगुनाया करो यूँ तन्हाइयों में तुम
कहीं इश्क़ की बातें सरे आम न हो जाये
कितनी बेबाक़ी से कह दिया कि इश्क़ है तुमको।
तो क्यों तकलीफ़ें अपनी छुपाना चाहता हो।।
कितने खतों को छुपाया है तुमने।
क्या मैं आज भी हूँ उनमे।।
मत गुनगुनाया करो यूँ तन्हाइयों में तुम
कहीं इश्क़ की बातें सरे आम न हो जाये
कितनी बेबाक़ी से कह दिया कि इश्क़ है तुमको।
तो क्यों तकलीफ़ें अपनी छुपाना चाहता हो।।
कितने खतों को छुपाया है तुमने।
क्या मैं आज भी हूँ उनमे।।