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Sheel Nigam

Romance

4  

Sheel Nigam

Romance

तुम्हारे अनुत्तरित प्रश्न

तुम्हारे अनुत्तरित प्रश्न

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याद है, बरसों पहले तुम मिले थे,

तब जब मैं बिना धरातल की ज़मीन पर खड़ी थी,

मेरे पैरों तले ज़मीन तो थी, 

पर मैं अपने आप को हवा में

झूलता हुआ सा महसूस करती थी.

तब तुम्हारी निश्छल आँखों में कितने प्रश्न थे?

अपने हर प्रश्न का उत्तर तुम मेरी आँखों में

झाँक-झाँक कर खोजने की कोशिश करते थे. 

जहाँ आँसुओं के सिवा और कुछ न था

मेरे निर्विकार नेत्रों के दर्पण में,

तुम्हारे सारे प्रश्नों के उत्तर धुंधला गए थे.

तुमने मेरे मन में भी झाँकने की कोशिश की थी,

जो निराशा के गर्त में पूरा का पूरा डूबा हुआ था.

वहाँ भी तुम्हें सिवाय अँधेरे के कुछ न मिला,

मेरे मन की सुनसान गलियों से गुज़र कर तुम लौट गए।

 

और आज फिर तुम बरसों बाद मिले हो

पर आज तुम्हारी आँखों में प्रश्नों की बौछार नहीं है,

आज भी मेरी आँखें गीली और पनीली हैं,

और तुम्हारे सभी प्रश्नों का उत्तर देने को बेताब हैं

लेकिन आज तुम प्रश्न नहीं पूछते.

 मेरे मन के अंधेरी पगडंडियाँ, अब रौशन हैं,

तुम्हें पुकार पुकार कर कह रहीं हैं, कि आओ, देखो,

अब मेरे पैरों तले का धरातल आधारहीन नहीं है।

मैने पथरीली राहों पर चल-चल कर

उसकी नींव को ठोस पत्थर सा बना दिया है.

जिस पर टिकी हूँ मैं, लड़ रही हूँ,सभी विसंगतियों से,

आज मैं चाहती हूँ कि तुम मुझसे प्रश्न पूछो,जानो मुझसे,

 कि, कैसे मैने अपनी आधारशिला को पाषाण रूप दिया? 

आज अगर तुम बिना प्रश्न पूछे चले जाओगे,तो न जाने

अगली बार, बरसों बाद जब तुम मिलोगे, तो मैं,

तुम्हारे सभी सवालों के उत्तर दे पाऊँगी या नहीं।

मेरी मूक पनीली आँखें भी शायद पथरीली हो जायें,

मेरे जीवन की हर व्यथा की कथा अधूरी रह जाए,

और तुम वापस चले जाओ,

अपने अनुत्तरित प्रश्नों के साथ।

अपने अनुत्तरित प्रश्नों के साथ।

 



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