तुम
तुम
तुम ..
एक वृक्ष की
कोई डाल नही
मेरा जड़ हो
जिससे मैं नित्य
नवजीवन की साँसें लेती हूँ
जीवन की आपाधापी में
मेरे सपने को
पंख दिये है तुमने
तुम मेघ का टुकड़ा नही
तुम मेरा नभ हो
जिसके विस्तार मे मैं
खो जाना चाहती हूँ
तुम कोई
राह का पत्थर नही
पारस हो
जो मुझ लौह को
कंचन बनाता है
हाँ अब भी शेष है
अपने पहले प्यार को
विशेष बताना ..