सखी बसंत आया
सखी बसंत आया
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कोई चितचोर आया
पूरब की ओर से,
कही सखी! बसंत में
प्रकृति सजी पोर पोर से...
अति हर्ष से नीर
छलके नयन कोर से,
चहुॅंओर दृष्टि दौड़े
छत पर खड़ी भोर से।
पीत चादर ओढ़ी धरा
दिखने लगी अंजोर से
पीली फूली सरसों की
महक फैली हर छोर से।
हिय ताल पर कंकरी
प्रिय, तरंग हिलोर से,
चंचल मन बँध रहे
परदेसी की डोर से।
मस्त मलंग सी दौड़ी
चलो, देखे उसे गौर से,
छनक उठी झांझर भी
उसके दिल के शोर से।