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Amit Srivastava

Abstract Romance Others

4.7  

Amit Srivastava

Abstract Romance Others

तुम रहने दो ,

तुम रहने दो ,

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मेरे साथ कहाँ तक चलोगे तुम 

मेरा साथ कहाँ तक दोगे तुम 

तुम रहने दो 

पग पत्थर, मीलों का सफर, 

तुम थक जाओगे 

तुम रहने दो,


आदत है मुझे चलने की,यूँ 

बिन साथ के और बिन साथी भी 

रेत सी सूखी लगती है,

सावन में भीगी, पाती भी 

तुम खुद को एक मृगतृष्णा सी 

बस जीवन में मेरे रहने दो 

तुम रहने दो,


बस इतना ही था चलना हमको 

ज़ितना कोई कश्ती नदिया पे,

लहरों की इस बन्दिश में फिर 

कोई एक कहीं रुक जाए जैसे,

तुम कोई किनारा देख लो अपना 

मुझे अविरल सागर सा बहने दो ..

तुम रहने दो


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