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Mayank Kumar 'Singh'

Romance

5.0  

Mayank Kumar 'Singh'

Romance

तुम पास होकर भी पास नहीं

तुम पास होकर भी पास नहीं

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325


तुम पास होकर भी पास नहीं

तुम खास हो कर भी खास नहीं

ए दिल की बात गज़ब हैं न

तुम धड़कन होकर भी सांस नहीं

मैं कैसे जी लूं यह जीवन

जिस में तेरा एहसास नहीं

तुम पास होकर भी पास नहीं


माना मस्ती है, मधु पीने में,

जिस शाम में तुझको जीता हूं

कैसे मैं बतला दूं,

उस शाम में ही मैं रोता हूं

आवाज जीवन को देना तुम

जो मौन बैठ सिसकती है

चांद-तारों को देख रोज

अंदर-अंदर ही मरती है

सुदूर बैठे सितारों की पीड़ा,

वह खूब रोज समझती है

तुम पास होकर भी पास नहीं


तुम जीवन की सुहाग हो

माना तुम मेरे पास नहीं

लेकिन मैं कैसे कह दूं कि,

तुम मेरी खास नहीं

माना किसी वर ने,

सेहरा सिर सजाये

तुम्हारे घर के चौखट पर,

दस्तक बेज़ोर दिया होगा

अपने पग के आहट से,


हमारी अरमानों को, कुचला होगा;

फिर भी तेरी आंखों ने,

सब कुछ कह दिया होगा

उस बंधन में बंधने से पहले

एक बंधन चुप खड़ा होगा

तुम पास होकर भी पास नहीं


पर फेरे ही सब कुछ नहीं होता

ये बात भी सत्य-सा हैं

जबरन के बंधन में बंधना

यह भी एक संयोग-सा हैं

तन को बांधा इन फेरों ने

मन को कहां बांध पाए

अनंत सागर में मिलने से,

किसी नदी को कहां रोक पाए !


प्रेम की जब मस्ती चढ़ती है

धरती-अंबर झूम जाता है

पवन का अल्हड़ प्रेम ,

वसुधा में दिख जाता है

यह छोटे-मोटे झूठे,

सामाजिक व्यापारी

प्रेमियों के तन को बांध सकते हैं,

अरे ! मन है असीम सागर,

इसको नहीं ये साध सकते हैं !


अंबर के ऊपर देखो तो समझो,

सभी स्वतंत्र है अपने मन के

किसी पर कोई अवरोध नहीं

कुछ सूरज के पीड़ा है

तो कुछ तारें के लोग वहीं

प्रेम में ही मरना-मिटना

सब का मात्र उद्देश्य वहीं !


तुम्हारे मन के लिए मैं बस इतना बोलूंगा

इसमें था इसमें हूं इसमें मैं रहूंगा

बिन फेरे के ही तेरा बनकर मैं रहूंगा

प्रेम की सुहाग में, फेरे का कोई मोल नहीं

रूह के आपस में मिलना बस अनमोल यहीं


जिस्म के लिए मैं इतना बोलूंगा,

तुम पास होकर भी पास नहीं

तुम खास हो कर भी खास नहीं !


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