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umesh kulkarni

Abstract

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umesh kulkarni

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तुम मेरे मालिक हो ?

तुम मेरे मालिक हो ?

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कैसे मान लूँ मैं- तुम मेरे मालिक हो

दो सबूत गर एक भी पास हो।


हम सब तेरे ही बच्चे- ये बार बार कहते हो

फिर हमें लड़वाके तमाशा क्यों देखते हो।


काम क्रोध मोह से मुक्त होने कहते हो 

क्यों आग लगाके बचने को कहते हो।


दरिंदे हैवानों को गोद में बिठाते हो

अपने ही भक्तों को भूंज के निकालते हो।


क्या बच्चे बूढ़े प्राणी एक सामान पापी हैं

प्रलय प्रकोप में क्यों सब को मिटाते हो।


नाकामियों पे अपने - बलि हमें चढ़ाते हो

पैदाइशी अपाहिज - क्यों बनाके भेजते हो।


देवलोक है भारतवर्ष - ए गरज के कहते हो

उसी का जर्जर हाल - इतना क्यों करते हो।


वचन पूर्ति का वादा - याद तो करो

कब होंगे प्रकट - एक बार तो कहो।  


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