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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Romance

4  

हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Romance

तुम जो मिले जानेमन

तुम जो मिले जानेमन

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तुम जो मिले हो जानेमन , जीने का सहारा मिल गया 

जैसे डूबते हुए आशिक को प्यार का किनारा मिल गया 

अकेला था अकेला कोई मंजिल ना कोई मकसद 

भटकता था मैं ऐसे बन के पंछी ना कोई सरहद 

देखा तुम्हें तो लगा यूं कि जिंदगी को गुजारा मिल गया 

तुम जो मिले हो जानेमन, जीने का सहारा मिल गया ।। 

बदल गई है दुनिया मेरी बहारों के मेले लगने लगे हैं 

सूनी सी आंखों में जाना सपने सुहाने सजने लगे हैं 

तुम्हें पाकर यूं लगता है जैसे कोई मीत प्यारा मिल गया 

तुम जो मिले हो जानेमन, जीने का सहारा मिल गया 

जैसे डूबते हुए आशिक को प्यार का किनारा मिल गया ।। 



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