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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Abstract Drama Classics

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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Abstract Drama Classics

सुनी सुनाई बात

सुनी सुनाई बात

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🎙️ सुनी-सुनाई बात
✍️ श्री हरि
🗓️ 7.11.2025

कानों में गिरे हुए शब्द,
कभी-कभी... तीर बन जाते हैं!
मन की शांति को भेदते हुए
निर्दोष आत्मा पर आरोप टाँक जाते हैं।

कहने वाला भूल जाता है...
पर सुनने वाला ढोता रहता है,
वो भार —
जो सत्य नहीं,
पर सत्य जैसा लगता है।

यह संसार... प्रतिध्वनि का वन है,
जहाँ हर स्वर लौटकर आता है,
थोड़ा विकृत... थोड़ा विकल...
थोड़ा और तीखा!
किसने कहा, क्या कहा, क्यों कहा —
सब विलीन हो जाता है,
बस बचती है —
एक झूठ की जड़!
जो धीरे-धीरे... सत्य का वेश धर लेती है!

मनुष्य का विवेक,
जब दूसरों के कथन से संचालित होता है,
तो उसका दृष्टिकोण नहीं,
उसकी आत्मा अंधी हो जाती है!

हे मानव!
श्रुति को प्रमाण मत बना — दृष्टि को प्रमाण बना!
कानों से जो सुना... वो पराया है,
नेत्रों से जो देखा — वही तेरा सत्य है!

क्योंकि सुनी-सुनाई बातों के जाल में...
सच नहीं मरता,
बस विलंबित होता है...
और जब लौटता है —
तो बहुत कुछ... जला कर लौटता है! 🔥

इसलिए,
जो सुनो — उसे उड़ जाने दो हवा के साथ,
वरना... वो लौटेगा,
धधकता हुआ,
तुम्हारे ही द्वार पर।


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