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Kumar Vikash

Abstract

5.0  

Kumar Vikash

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सृष्टि को समर्पित

सृष्टि को समर्पित

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एक बहुत सुन्दर विचार मेरे मस्तिष्क में आया है,

उसे शब्दों में पिरोकर मैंने एक माला बनाया है !


सोचा है कभी हमें मिली ये जिन्दगी क्यों,

मिली है जिन्दगी तो हम इतने दुखी क्यों !


पेड़ हैं पक्षी हैं पशु धरती जल आकाश,

चाँद और तारे हैं और वायु सूर्य प्रकाश !


हम इन्सान होकर भी क्यों दुखी रहते हैं,

पशु पक्षी मस्त गगन में विचरते रहते हैं !


इस सृष्टि को देखा समझा जब जाना मैंने,

तब मानव जाति के दुख का कारण पहचाना मैंने !


एक पेड़ हमें देता शीतल पवन फल फूल ठंडी छाया,

और उस मृत पेड़ की भी कितने काम है आती काया !


पशु पक्षी सुबह सबेरे भोर होते ही उठ जाते,

अपने शोर से भोर का वो हमें आभास कराते !


बीजों को खाकर इधर-उधर वो छोड़ जाते,

वन लगाने में वो हमारे सहायक कहलाते !


पशुओं में गाय हमें अपना निर्मल दूध पिलाती है,

मर कर भी काम आती है अपना चर्म हमें दे जाती है !


धरा को माता का दर्जा दिया हमने,

माता के सीने पर हम हल चलाते हैं !


हम अपना उदर पोषण करने के लिये,

माता का सीना छलनी कर दाना उगाते हैं !


जल विहीन जीवन नहीं धरा जायेगी सूख,

कंठ रहेंगे प्यासे हमें ले जायेंगे यमदूत !


जल प्रदूषण बंद करो बूँद-बूँद संग्रह करो,

एक दिन ऐसा आयेगा प्राण जायेंगे छूट !


आकाश बादल बनाता है,

वन पवन चलाता है पवन बादल उड़ाता है !


वर्षा होती है धरती पर ,

खेत लहलहाते हैं और झरना उफनाता है !


सूरज जलता है और तपता है ,

आग का गोला कुन्दन सा चमकता है !


हमारे इस जीवन अँधियारे को ,

रोशन करने पूरब से निकलता है !


पेड़ हैं पक्षी हैं पशु धरती जल आकाश,

चाँद और तारे हैं और वायु सूर्य प्रकाश !


इन सब में है बस एक ही समानता,

वो हम इंसानों में कभी नहीं पाई जाती !


इन सबका जीवन है सृष्टि को समर्पित,

और इन्सान सदा से अपने लिये ही

जीता हैं !


यही इन्सान के दुख का मूल कारण है,

जो सदा ही रहा है और सदा ही रहेगा !


क्यों की न हम कभी सृष्टि को कुछ दे पाये हैं,

और न कभी कुछ दे पायेंगे और न कभी कुछ दे पायेंगे !


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