सृष्टि को समर्पित
सृष्टि को समर्पित
एक बहुत सुन्दर विचार मेरे मस्तिष्क में आया है,
उसे शब्दों में पिरोकर मैंने एक माला बनाया है !
सोचा है कभी हमें मिली ये जिन्दगी क्यों,
मिली है जिन्दगी तो हम इतने दुखी क्यों !
पेड़ हैं पक्षी हैं पशु धरती जल आकाश,
चाँद और तारे हैं और वायु सूर्य प्रकाश !
हम इन्सान होकर भी क्यों दुखी रहते हैं,
पशु पक्षी मस्त गगन में विचरते रहते हैं !
इस सृष्टि को देखा समझा जब जाना मैंने,
तब मानव जाति के दुख का कारण पहचाना मैंने !
एक पेड़ हमें देता शीतल पवन फल फूल ठंडी छाया,
और उस मृत पेड़ की भी कितने काम है आती काया !
पशु पक्षी सुबह सबेरे भोर होते ही उठ जाते,
अपने शोर से भोर का वो हमें आभास कराते !
बीजों को खाकर इधर-उधर वो छोड़ जाते,
वन लगाने में वो हमारे सहायक कहलाते !
पशुओं में गाय हमें अपना निर्मल दूध पिलाती है,
मर कर भी काम आती है अपना चर्म हमें दे जाती है !
धरा को माता का दर्जा दिया हमने,
माता के सीने पर हम हल चलाते हैं !
हम अपना उदर पोषण करने के लिये,
माता का सीना छलनी कर दाना उगाते हैं !
जल विहीन जीवन नहीं धरा जायेगी सूख,
कंठ रहेंगे प्यासे हमें ले जायेंगे यमदूत !
जल प्रदूषण बंद करो बूँद-बूँद संग्रह करो,
एक दिन ऐसा आयेगा प्राण जायेंगे छूट !
आकाश बादल बनाता है,
वन पवन चलाता है पवन बादल उड़ाता है !
वर्षा होती है धरती पर ,
खेत लहलहाते हैं और झरना उफनाता है !
सूरज जलता है और तपता है ,
आग का गोला कुन्दन सा चमकता है !
हमारे इस जीवन अँधियारे को ,
रोशन करने पूरब से निकलता है !
पेड़ हैं पक्षी हैं पशु धरती जल आकाश,
चाँद और तारे हैं और वायु सूर्य प्रकाश !
इन सब में है बस एक ही समानता,
वो हम इंसानों में कभी नहीं पाई जाती !
इन सबका जीवन है सृष्टि को समर्पित,
और इन्सान सदा से अपने लिये ही
जीता हैं !
यही इन्सान के दुख का मूल कारण है,
जो सदा ही रहा है और सदा ही रहेगा !
क्यों की न हम कभी सृष्टि को कुछ दे पाये हैं,
और न कभी कुछ दे पायेंगे और न कभी कुछ दे पायेंगे !