बचपन जवानी बुढ़ापा
बचपन जवानी बुढ़ापा
हर इक की आँखों का वो ध्रुवतारा होता है
सच है प्यारे बचपन कितना प्यारा होता है
उसका रूप सलोना जादू क्यों न लगे मन को
बचपन पावन गंगा का ही धारा होता है।
उसकी चमक-दमक के आगे क्यों न झुके मस्तक
बचपन चढ़ते सूरज का उजियारा होता है
आँच न आये उस पे कभी भी उसके रखवालों
बचपन रोता-चिल्लाता बेचारा होता है।
काश, सदा ही साथ रहे उसका प्यारा - प्यारा
बचपन से घर महका - महका सारा होता है
मदमस्त सा हर इक को बनाती है जवानी
कुछ इस तरह से दोस्तो आती है जवानी।
मायूस उसे कितना बनाती है जवानी
जब आदमी को छोड़ के जाती है जवानी
कोई भी उसे तजने को तैयार नहीं है
कुछ इस तरह से सबको लुभाती है जवानी।
क्योंकर न दिखे हर कोई सुन्दर या सलोना
चेहरे को चार चाँद लगाती है जवानी
साथ अपने लिए घूमती है ख़ास अदाएँ
यूँ शान निराली सी दिखाती है जवानी।
दम से इसी के है बड़ी दुनिया में सजावट
हर इक को इसी बात पे भाती है जवानी
ए `प्राण` उसे कोई भी गुस्सा न दिलाना
जीवन में घनी आग लगाती है जवानी।
हँसते हुए जो शख्स बिताता है बुढ़ापा
उस शख्स के चेहरे को सुहाता है बुढ़ापा
बच्चों की खुशी उसके लिए सबसे बड़ी है
उनकी खुशी में खुशियाँ मनाता है बुढ़ापा।
औलाद का दुःख-दर्द न देखे वो तो अच्छा
अपने को कई रोग लगाता है बुढ़ापा
कितने हैं वे कमज़ोर से ए दोस्तो दिल के
जो कहते हैं कि उनको सताता है बुढ़ापा।
इस बात को तू बाँध ले पल्ले से मेरे दोस्त
हर बात तजुरबे की बताता है बुढ़ापा
ये बात है सच्ची भले माने कि न माने
हर गलती का अहसास कराता है बुढ़ापा।
ए `प्राण` बुढापे का निरादर नहीं करना
इक रोज़ हरिक शख्स को आता है बुढ़ापा।।