वक्त का पहिया
वक्त का पहिया
⏳ वक्त का पहिया : एक संवाद ⏳
✍️ श्री हरि
9.11.2025
मैंने पूछा — “ए वक्त! तू इतना निर्दयी क्यों है?”
वो मुस्कराया — “निर्दयी नहीं, सच्चा हूं मैं।
जिसे तुम ठहरना कहते हो,
उसे मैं बहना कहता हूं।”
मैंने कहा — “कभी तो ठहर जा ज़रा,
इन लम्हों को जीने दे।”
वो बोला — “अगर मैं ठहर जाऊं,
तो जीवन रुक जाएगा — और तुम भी।”
फिर बोला धीमे स्वर में —
“मैं ही तुम्हारे बचपन की किलकारी हूं,
मैं ही बुढ़ापे की लाचारी हूं,
मैं ही प्रेम की प्रतीक्षा हूं,
और मैं ही विदाई की तैयारी हूं।”
मैंने झुककर कहा — “तू न्याय नहीं करता,
किसी से छीन लेता है सब कुछ।”
वो हंसा —
“मैं छीनता नहीं, केवल बदलता हूं;
बीज से वृक्ष बनाता हूं,
फूल से फल, और इंसान से अनुभव।”
फिर बोला —
“मत डर मुझसे, मैं ही तेरी कहानी हूं,
तेरे हर आंसू में मैं ही रवानी हूं।
मैं ही कल का सबक,
और मैं ही कल की निशानी हूं।”
मैं चुप हो गया…
बस देखा —
कैसे वक्त का पहिया
धीरे-धीरे घूमता रहा,
कभी अतीत बनता,
कभी भविष्य,
और मैं —
वर्तमान में ठहरा,
अपनी ही परछाई देखता रहा। 🌙
